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मनरेगा के तहत काम की बढ़ी मांग, क्या गांवों में रोजगार की दिक्कत हो रही है?

By: Sanjay Purohit | Created At: 01 April 2024 09:23 AM


ग्रामीण इलाकों में रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा योजना के तहत काम के दिनों की संख्या कोरोना के पहले से 40 करोड़ ज्यादा हो गई है।

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मनरेगा योजना के तहत दिए गए काम के दिनों की संख्या कोरोना महामारी से पहले के समय (2019-20) से 40 करोड़ ज्यादा हो गई है। इससे यह संकेत मिलता है कि गांवों में अभी भी आर्थिक दिक्कतें हैं और शहरों में रोजगार के अवसर पूरी तरह वापस नहीं आए हैं। मनरेगा योजना को ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों को रोजगार देने वाली मुख्य सरकारी योजना माना जाता है। 31 मार्च 2024 तक इस योजना के तहत दिए गए काम के दिनों की संख्या 305.2 करोड़ हो गई है। यह आंकड़ा महीने के अंत तक का है और अंतिम संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती है। इसकी तुलना में 2022-23 में दिए गए काम के दिन 293.7 करोड़ रहे थे। इस साल 12 करोड़ ज़्यादा दिनों का काम दिया गया।

क्या कहते हैं मनरेगा के आंकड़े?

पिछले दो साल (2022-23 और 2023-24) के आंकड़े बताते हैं कि गरीब और बिना किसी खास हुनर वाले लोगों के लिए रोजगार का हाल 2019-20 जैसा नहीं हुआ है। 2019-20 में मनरेगा के तहत 265.3 करोड़ काम के दिन दिए गए थे। गौर करने वाली बात ये है कि 2022-23 में 2019-20 के मुकाबले 28.4 करोड़ ज्यादा काम के दिन दिए गए। वहीं, 2023-24 में अब तक यह आंकड़ा 40 करोड़ से भी ज़्यादा हो गया है। दरअसल, महामारी के दौरान 2020-21 में मनरेगा के तहत रिकॉर्ड 389.9 करोड़ काम के दिन दिए गए थे। इसके बाद 2021-22 में ये आंकड़ा थोड़ा कम होकर 363.2 करोड़ रहा। कोरोना की वजह से लॉकडाउन के दौरान लोगों के लिए रोजगार के पारंपरिक ठिकाने बंद हो गए थे, इसलिए इन दो सालों को मनरेगा के आंकड़ों में कुछ अलग माना जाता है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?

आजिम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और मनरेगा के एक्सपर्ट्स राजेंद्रन नारायणन का कहना है कि यह साफ है कि ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी ज्यादा होने की वजह से मनरेगा की मांग बढ़ी है। ये कई सर्वे में भी पाया गया है। मनरेगा के तहत काम की मांग और पूर्ति का आंकड़ा महामारी से पहले के सालों के मुकाबले ऊंचा रहना ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी और दिक्कतों का संकेत है।