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आजादी के ढाई साल बाद भी गुलाम था भोपाल, 1 जून को यहां लहराया था तिरंगा

By: Sanjay Purohit | Created At: 01 June 2024 09:38 AM


एमपी की राजधानी भोपाल में गौरव दिवस की पूर्व संध्या पर आतिशबाजी कर जश्न मनाया गया। आज भी शहर में कई जगह जश्न-ए-आजादी का दौर जारी है।

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झीलों की नगरी और गैस त्रासदी के नाम से दुनिया भर में जाना-पहचाना जाता है मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को। लेकिन क्या आपको पता है कि रियासत कालीन नवाबी अदब और तहजीब वाला ये शहर देश की आजादी 15 अगस्त 1947 के बाद भी ढाई साल तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा। देश में इसका विलीनीकरण 1 जून 1949 को हुआ। यही वो दिन था जब भोपाल गुलामी से आजाद हुआ और देश का तिरंगा यहां शान से लहराता दिखा।

सरदार वल्लभ भाई पटेल की सख्ती काम आई

1947 में ब्रिटिश हुकूमत से देश को भले ही आजादी मिली हो, लेकिन, भोपाल के लोग ढाई साल तक गुलाम ही महसूस करते रहे। 15 अगस्त 1947 के बाद भी यहां नवाबों का शासन था। इसके लिए ढाई साल तक संघर्ष हुआ। खास बात यह भी है कि तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की सख्ती के बाद 1 जून 1949 को भोपाल रियासत का विलय भारत में किया जा सका।

नेहरू, जिन्ना और अंग्रेजों के दोस्त थे भोपाल नवाब

1947 यानी जब भारत को आजादी मिल गई थी, तब भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्लाह थे। वे नेहरू और जिन्ना के साथ ही अंग्रेज़ों के भी काफी अच्छे दोस्त थे। जब भारत को आजाद करने का फैसला किया गया उस समय यह निर्णय भी लिया गया कि पूरे देश में से राजकीय शासन हटा लिया जाएगा। अंग्रेजों के खास नवाब हमीदुल्लाह भारत में विलय के पक्ष में नहीं थे। क्योंकि वे भोपाल पर शासन करना चाहते थे।

जिन्ना ने दिया था प्रस्ताव

जब पाकिस्तान बनाने पर निर्णय हुआ और जिन्ना ने हिन्दुस्तान के सभी मुस्लिम शासकों को भी पाकिस्तान का हिस्सा बनाने का प्रस्ताव दिया। तो जिन्ना के करीबी होने के कारण भोपाल नवाब को पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद सौंपने की बात की गई। ऐसे में हमीदुल्लाह ने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल का शासक बनाकर रियासत संभालने को कहा, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। अंततः हमीदुल्लाह भोपाल में ही रहे और भोपाल को अपने अधीन बनाए रखने के लिए भारत सरकार के खिलाफ खड़े हो गए।

तब भोपाल में नहीं लहराया था तिरंगा

देश आजाद हो चुका था, हर मोर्चों पर भारतीय ध्वज लहराया जाता था। लेकिन, भोपाल में इसकी आजादी किसी को नहीं थी। दो साल तक ऐसी स्थिति रही। तब भोपाल के नवाब भारत सरकार के किसी कार्यक्रम में शिरकत नहीं करते थे और आजादी के जश्न में भी नहीं जाते थे।