मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐसी याचिका को हस्तक्षेप करने के अयोग्य मानते हुए खारिज कर दिया, जिसमें हिन्दू युवती तथा मुस्लिम युवक ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी पंजीकृत करवाने के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। विवाह पंजीकरण अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के लिए उन्हें पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए। याचिका में कहा गया था कि युवती का पिता अंतर-जाति विवाह का विरोध कर रहा है। याचिका की सुनवाई के दौरान अनावेदक पिता की तरफ से बताया गया कि उसकी बेटी घर से सभी के आभूषण ले गई है। इसके अलावा वह मुस्लिम लड़के से अंतर जाति विवाह करती है तो समाज उसका बहिष्कार कर देगा।
विशेष विवाह अधिनियम व्यक्तिगत कानून को दरकिनार करता है। एकलपीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक मुस्लिम पुरुष तथा एक हिंदू महिला के बीच विवाह से पैदा हुए बच्चों के उत्तराधिकार अधिकारों के संबंध में पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा कि दोनों के बीच विशेष विवाह अधिनियम के तहत हुए विवाह एक अनियमित तथा फसादी विवाह होगा। एकलपीठ ने कहा कि पर्सनल लॉ के तहत विवाह की कुछ रस्मों का पालन किया जाता है। एकलपीठ ने मुस्लिम लॉ का हवाला देते हुए कहा कि मुस्लिम लड़का किसी ऐसी लड़की से विवाह नहीं कर सकता जो मूर्ति पूजक या अग्नि पूजक करती हो। इस प्रकार मुस्लिम लड़की सिर्फ मुस्लिम युवक से शादी कर सकती है। विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत होने के बावजूद भी पर्सनल लॉ के तहत यह वैध विवाह नहीं होगा। यह एक अनियमित व फसादी विवाह होगा। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिका लिव-इन रिलेशनशिप में रहने या धर्म परिवर्तन से संबंधित नहीं है। इसलिए न्यायालय याचिका को हस्तक्षेप करने के अयोग्य मानते हुए खारिज करती है।