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जानें कब है सूरदास जयंती? बिना दृष्टि के भी कैसे किया श्रीकृष्ण का सुंदर वर्णन

By: Sanjay Purohit | Created At: 04 May 2024 09:31 AM


भक्ति काल में सगुण धारा के महाकवि सूरदास जी भगवान कृष्ण के अनन्य उपासक थे जिन्होंने जन्म से दृष्टिहीन होने के बाद भी भगवान श्री कृष्ण का बाल रूप का इतना सुंदर वर्णन किया जैसा कोई दृष्टि वाला व्यक्ति भी नहीं कर सकता होगा.

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महाकवि सूरदास को कृष्ण भक्ति के साथ हिंदी साहित्य में भी उच्च स्थान प्राप्त हैं. सूरदास जी को ब्रजभाषा का श्रेष्ठ कवि माना जाता है. इनके काव्य में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन इस प्रकार मिलता है जैसे महाकवि सूरदास जी ने स्वयं भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं को देखा और महसूस किया हो

कब है सूरदास जी की जयंती ?

पुष्टिमार्ग के अनुयायियों में प्रचलित धारणा के अनुसार सूरदास जी को उनके गुरु वल्लभाचार्य जी से दस दिन छोटा बताया जाता है. जिसके अनुसार प्रति वर्ष वल्लभाचार्य जयंती के ठीक दस दिन बाद महाकवि सूरदास जी की जयंती मनाई जाती है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, सूरदास जयंती हल सार वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है वही अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार महाकवि सूरदास जी की जयंती रविवार 12 मई 2024 को मनाई जाएगी.

महाकवि सूरदास का जीवन परिचय

सूरदास जी के जन्म तिथि को लेकर कई मतभेद है लेकिन इतिहासकारों के अनुसार सूरदास जी का जन्म 1478-1581 ई. के बीच माना जाता है. उनका जन्म स्थान गांव सीही , फरीदाबाद, हरियाणा है. हालांकि कुछ लोगों यह भी दावा करते हैं कि उनका जन्म आगरा के पास रुनकता में हुआ था. जिसके बाद मात्र छ: वर्ष की आयु में ही उन्होंने अपने माता-पिता को अपनी सगुन विद्या से आश्चर्यचकित कर दिया था. लेकिन उसके कुछ ही समय बाद वे घर छोड़कर अपने घर से चार कोस दूर एक गांव में जाकर तालाब के किनारे रहने लगे थे.

प्राप्त हुई थी दिव्य दृष्टि

कहा जाता है कि सूरदास जन्म से ही नेत्रहीन थें लेकिन उनके काव्य का में जो सजीवता का भाव नज़र आता है वह भाव किसी नेत्र वाले कवियों रचना में भी नहीं मिलता. इतिहासकारों का मानना है कि सूरदास जी पूरी तरह से समर्पित संत थें जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण का भक्ति और अनुसरण किया, जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सूरदास जी की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सपने में दर्शन दिए और उन्हें वृंदावन जाने के लिए कहा.

सूरदास जी ने यहां किया था देह त्याग

सूरदास जी कृष्ण भक्ति में सदैव मग्न रहें. उस दौरान उन्होंने वल्लभाचार्य द्वारा ‘श्रीमद् भागवत’ में वर्णित कृष्ण की लीला का ज्ञान प्राप्त किया तथा अपने कई पदों में उसका वर्णन भी किया. उन्होंने ‘भागवत’ के द्वादश स्कन्धों पर पद-रचना की, ‘सहस्त्रावधी’ पद रचे, जो ‘सागर’ कहलाए. सूरदास की पद-रचना और गान-विद्या की ख्याति सुनकर अकबर भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकें.उन्होंने मथुरा आकर सूरदास से भेंट की. श्रीनाथजी के मंदिर में बहुत दिनों तक कीर्तन करने के बाद जब सूरदास को अहसास हुआ कि भगवान अब उन्हें अपने साथ ले जाने की इच्छा रख रहे हैं, तो वे श्रीनाथजी में स्थित पारसौली के चन्द्र सरोवर पर आकर लेट गए और श्रीनाथ जी की ध्वजा का ध्यान करने लगे। इसके बाद सूरदास ने अपना शरीर त्याग दिया.