'आर्थिक अपराधियों को नहीं लगे हथकड़ी', संसदीय समिति की सिफारिश- हत्या व दुष्कर्म के अपराधियों के साथ भी ना रखा जाए
By: payal trivedi | Created At: 13 November 2023 09:07 PM
एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि आर्थिक अपराध के मामले में हिरासत में लिए गए लोगों को हथकड़ी नहीं पहनाई जानी चाहिए। साथ ही उन्हें हत्या और दुष्कर्म जैसे घृणित मामलों के अपराधियों के साथ भी नहीं रखा जाना चाहिए।

New Delhi: एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि आर्थिक अपराध के मामले में हिरासत में लिए गए लोगों को हथकड़ी नहीं पहनाई जानी चाहिए। साथ ही उन्हें हत्या और दुष्कर्म जैसे घृणित मामलों के अपराधियों के साथ भी नहीं रखा जाना चाहिए।
किसको नहीं पहनाई जानी चाहिए हथकड़ी?
भाजपा सांसद बृजलाल की अध्यक्षता में गृह मंत्रालय की एक स्थायी समिति ने सोमवार को बताया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस-2023) के प्रस्तावित विधेयक की धारा 43(3) में हथकड़ी के इस्तेमाल के लिए कहा गया है, जबकि हथकड़ी लगाने का प्रविधान घृणित अपराधों में पकड़े गए लोगों के लिए होता है ताकि वह पुलिस की गिरफ्त से भाग न जाएं। इस नियम के तहत गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों की सुरक्षा को ध्यान में रख के भी यह किया जाता है।
समिति ने धारा 43(3) से 'आर्थिक अपराध' शब्द हटाने को कहा
समिति का विचार है कि आर्थिक अपराधियों को इस श्रेणी में शामिल नहीं करना चाहिए। समिति ने यह विरोध 'आर्थिक अपराध की श्रेणी' में रख कर किया है। इसलिए समिति सिफारिश करती है कि धारा 43(3) से 'आर्थिक अपराधों' शब्द को हटा दिया जाए।
स्थायी समिति ने अपनी सिफारिश में क्या कहा?
स्थायी समिति ने अपनी सिफारिश में यह भी कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के मुद्दे पर आरोपितों को गिरफ्तारी के बाद पहले 15 दिन से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रखा जाना चाहिए। बीएनएसएस की धारा 187(2) के तहत कुल 15 दिन की पुलिस हिरासत होनी चाहिए। 15 दिन की हिरासत एक साथ भी दी जा सकती है और अलग समय पर भी दी जा सकती है। इसी मौजूदा व्यवस्था में 60 या 90 दिनों तक का नहीं होना चाहिए।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता को लोकसभा में किया गया है पेश
उल्लेखनीय है कि विगत 11 अगस्त को लोकसभा में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस-2023) विधेयक को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) विधेयकों के साथ पेश गया था। उन प्रस्तावित कानूनों के जरिये सीपीसी, 1898, भारतीय दंड संहिता-1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को बदला गया है।