दिल्ली। साल 1974 तक भारत और श्रीलंका के बीच विवाद का कारण रहा कच्चाथीवू आइलैंड एक बार फिर सुर्ख़ियों में हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कच्चाथीवू श्रीलंका को दिए जाने पर कांग्रेस पर सवाल उठाए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल में यह आइलैंड समझौते के तहत श्रीलंका को दे दिया गया था। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के लिए समुद्री सीमाओं और विशेष आर्थिक जोन को परिभाषित करना था।
एक RTI रिपोर्ट सामने आने पर पीएम मोदी ने कच्चाथीवू आइलैंड पर कांग्रेस को घेरते हुए एक्स पर लिखा कि, 'नए तथ्यों से पता चलता है कि कैसे कांग्रेस ने बेरहमी से कच्चाथीवू को छोड़ दिया। इससे हर भारतीय नाराज है और लोगों के मन में यह बात बैठ गई है कि हम कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं कर सकते! भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना 75 वर्षों से कांग्रेस का काम करने का तरीका रहा है।'
कच्चाथीवू भारत और श्रीलंका के बीच पाल्क स्ट्रेट में 285 एकड़ का एक निर्जन द्वीप है। कच्चाथीवू भारत के रामेश्वरम से लगभग 14 समुद्री मील की दूरी पर स्थित है। भारत द्वारा कभी कच्चाथीवू द्वीप का सीमांकन नहीं किया गया। साल 1974 तक इस द्वीप को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद रहा। इस द्वीप का उपयोग श्रीलंका के तमिल और तमिलनाडु के मछुआरे बहुत पहले से करते आए हैं। 1974 में भारत ने कच्चाथीवू को श्रीलंका के क्षेत्र के रूप में स्वीकार कर लिया था।
पहले कच्चाथीवू द्वीप का स्वामित्व रामनाथपुरम रामेश्वरम के रामनाद साम्राज्य के पास था जो बाद में भारत के ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास प्रेसीडेंसी के अंतर्गत आ गया। मद्रास और सीलोन की तत्कालीन सरकारों के बीच मन्नार की खाड़ी और पाल्क स्ट्रेट के परिसीमन के बाद इसे श्रीलंका द्वारा ब्रिटिश भारत के हिस्से के रूप में मान्यता दी गई थी। बावजूद इसके साल 1921 में श्रीलंका ने कच्चाथीवू पर दोबारा दावा कर दिया।