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Rajasthan Exit Poll: क्या राजस्थान में कांग्रेस 5-7 सीटें जीत पाएगी? पिछले चुनाव के मुकाबले गिरा वोटिंग टर्न आउट, जानें क्या है स्थिति

By: payal trivedi | Created At: 03 June 2024 05:48 AM


राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हो चुकी है। जिसके नतीजे 4 जून को आएंगे। लेकिन नतीजों से पहले एग्जिट पोल के अनुमान सामने आ गए हैं।

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Jaipur: राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों (Rajasthan Exit Poll) पर वोटिंग हो चुकी है। जिसके नतीजे 4 जून को आएंगे। लेकिन नतीजों से पहले एग्जिट पोल के अनुमान सामने आ गए हैं। लगभग सभी एग्जिट पोल यह बता रहे हैं कि इस बार राजस्थान में कांग्रेस का खाता खुलेगा। जीत का दावा 5-7 सीट पर किया जा रहा है। राजस्थान के वोटिंग पैटर्न को देखें तो आंकड़े एग्जिट पोल के कुछ दावों का समर्थन करते हुए नजर आ रहे हैं। मइस बार वोटिंग टर्न आउट पिछले चुनाव के मुकाबले गिर गया है। राजस्थान के लिए आमतौर पर माना जाता है कि वोटिंग पर्सेंटेज गिरता है, तो कांग्रेस को फायदा मिलता है और उसकी सीट बढ़ती हैं। इधर, वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ता है तो बीजेपी को फायदा होता है और ज्यादा सीटें बीजेपी की झोली में जाती हैं। आज आपको बताएंगे 2004 से लेकर 2024 तक के 5 चुनावों के वोटिंग पैटर्न कैसा रहा

सबसे पहले बात लोकसभा चुनाव 2024 की। राजस्थान में लोकसभा चुनाव में इस बार वोटिंग टर्न आउट 4.8 फीसदी गिर गया है। इस चुनाव में टोटल वोटिंग टर्न आउट 61.53 फीसदी रहा। टोटल वोटिंग टर्न आउट का ये आंकड़ा 2014 के चुनाव से भी कम है। इस लोकसभा चुनाव में टोटल वोटिंग पर्सेंटेज गिरने से कांग्रेस के खेमें में उत्साह है। कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि वोटिंग टर्न आउट कम रहना पार्टी के फेवर में है और वह राजस्थान में 7 सीट तक जीत सकती है। इधर, भाजपा सभी 25 सीटें जीतने का दावा तो कर रही है लेकिन वोटिंग पैटर्न को देखने के बाद असमंजस है। सभी सीटें जीतने की बात बीजेपी नेता अंदर खाने उतने कॉन्फिडेंस से नहीं बोल रहे, जितने कॉन्फिडेंस से 2019 में बोल रहे थे। इनमें दौसा उन सीटों में शामिल है, जिसमें कांग्रेस अपनी पक्की जीत मान रही है। इस सीट के 10 फीसदी से अधिक गिरावट वाले वोटिंग ट्रेंड के कारण भाजपा के नेताओं की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। यहां 2019 में भी जीत हार का अंतर करीब 70 हजार वोट का था। इस बार कांग्रेस ने विधायक मुरारी लाल मीणा जैसे मजबूत उम्मीदवार को उतारा है। यहां सचिन पायलट का भी प्रभाव है।

वहीं बात झुंझुनूं सीट की करें तो यहां से कांग्रेस ने कद्दावर जाट नेता रहे शीशराम ओला के बेटे और विधायक बृजेंद्र ओला पर दांव खेला है। वोटिंग पर्सेंट गिरने को कांग्रेस अपने पक्ष में मान रही है। ओला परिवार के प्रभाव का फायदा भी कांग्रेस को मिलने की उम्मीद है। भाजपा ने विधानसभा चुनाव हार चुके उम्मीदवार शुभकरण चौधरी को इस सीट पर मौका दिया है। वोटिंग परसेंटेज में गिरावट बीजेपी खेमे के लिए चिंता बनी हुई है।

कांग्रेस गठबंधन के कारण सीकर सीट चर्चा में है। यहां कांग्रेस और सीपीआई वोट बैंक एकजुट होने की उम्मीद से कांग्रेस जीत की उम्मीद में है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का गृह जिला होने का भी कारण गिनाया जा रहा है। वोटिंग पैटर्न को भी कांग्रेस अपने पक्ष में मान रही है।

सवाईमाधोपुर सीट से बीजेपी ने मौजूदा सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया को तीसरी बार टिकट दिया है। कांग्रेस का मानना है कि इस सीट पर स्थानीय एंटी इनकम्बैंसी से बीजेपी को नुकसान होगा और फायदा उन्हें मिलेगा। वहीं, यहां मीणा समाज एक बड़ा वोट बैंक है। सचिन पायलट का प्रभाव और जातीय समीकरण भी कांग्रेस अपने पक्ष में मान रही है।

नागौर उन सीटों में शामिल है, जहां कड़ी टक्कर (Rajasthan Exit Poll) होने के बावजूद वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ने की बजाय गिरा है। इस सीट पर कांग्रेस ने आरएलपी के साथ गठबंधन किया हुआ है। हनुमान बेनीवाल का ये प्रभाव क्षेत्र है। बेनीवाल को उम्मीद है कि कांग्रेस व आरएलपी का वोट बैंक एकजुट होने से उन्हें फायदा मिला है और बीजेपी को इससे नुकसान होगा।

चूरू सीट विधानसभा चुनाव के बाद से ही चर्चा में बनी हुई है। इस सीट पर दशकों से कब्जा कस्वां परिवार का रहा है। लेकिन इस बार बीजेपी ने राहुल कस्वां की टिकट काट दी, तो वे कांग्रेस में शामिल होकर चुनाव मैदान में खड़े हो गए। इस कारण इस सीट पर कांग्रेस को एक मजबूत उम्मीदवार मिल गया। कांग्रेस का मानना है कि टिकट कटने की सहानुभूति और सबसे प्रभावशाली वोटर जाट समाज, दोनों ही कस्वां के पक्ष में है।

प्रहलाद गुंजल की बगावत के कारण कोटा-बूंदी सीट पर सभी की नजरें हैं। गुंजल जैसे उम्मीदवार के कारण कांग्रेस को इस सीट से काफी उम्मीदे हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला यहां से फिर मैदान में हैं। कड़ी टक्कर के कारण यहां वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों में गुंजल की पकड़ और कांग्रेस वोट बैंक के जुड़ने से कांग्रेस यहां खुद को मजबूत मान रही है।

राजस्थान में एक मजबूत त्रिकोणीय मुकाबले के कारण बाड़मेर-जैसलमेर सीट के नतीजों का सभी को इंतजार है। कड़े मुकाबले के कारण यहां वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ा है। यहां कांग्रेस का मानना है कि निर्दलीय उम्मीदवार विधायक रविंद्र भाटी के खड़े होने से बीजेपी को नुकसान होगा।

अब बता कर लेते हैं 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव की जहां बीजेपी ने 17 सीटें खोई तो वहीं कांग्रेस ने 16 सीटें पाई

दरअसल लोकसभा चुनाव 2004 में राजस्थान में टोटल वोटिंग टर्नआउट 49.8 था। बीजेपी का वोट शेयर 49 पर्सेंट रहा और कांग्रेस का 41.4 फीसदी। तब राजस्थान में बीजेपी के पास 21 और कांग्रेस के पास महज 4 सीटें थी। वहीं, 2009 में टोटल वोटिंग टर्नआउट 1.4 गिरकर 48.4 रह गया। बीजेपी का वोट शेयर गिर कर 36.6 रह गया और कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ कर 47.2 हो गया। इन आंकड़ों ने बीजेपी का बड़ा नुकसान किया। बीजेपी का वोट शेयर 12.6 फीसदी घटने से 17 सीटों का नुकसान हुआ। अब बीजेपी के पास 4 सीट थी, कांग्रेस के पास 20 और एक सीट निर्दलीय के खाते में आई। इस तरह वोटिंग पर्सेंटेज गिरने से बीजेपी और कांग्रेस की सीटों में पूरी तरह उलटफेर दर्ज किया गया।

बात लोकसभा चुनाव 2014 की करे तो इस समय वोट शेयर 14.7 फीसदी बढ़ा तो बीजेपी ने सभी 25 सीटें जीतीं

बता दें कि राजस्थान में 2014 में टोटल वोटिंग टर्न आउट में जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया। इसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ और पार्टी ने सभी 25 सीटें जीत लीं और कांग्रेस को जीरो पर लाकर खड़ा कर दिया। 2009 के मुकाबले वोटिंग पर्सेटेज बढ़ने से आंकड़े कांग्रेस के खिलाफ आए। लोकसभा चुनाव 2009 में टोटल टर्न आउट 48.4 था, जो 2014 में सीधे 63.1 फीसदी तक पहुंच गया। 2014 के चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 36.6 से सीधे 55.6 फीसदी पर पहुंच गया था। नतीजा, सभी 25 सीटें बीजेपी ने जीत लीं। इधर, कांग्रेस का वोट शेयर 47.2 से सीधे 30.7 फीसदी पर जा गिरा। ऐसे में कांग्रेस एक सीट भी नहीं निकाल पाई।

बात लोकसभा चुनाव 2019 करें तो इस समय वोट शेयर 4.8 फीसदी और बढ़ा और बीजेपी ने रिकॉर्ड बरकरार रखा तो वहीं कांग्रेस फिर खाली हाथ रही

दरअसल लोकसभा चुनाव 2014 के बाद 2019 में टोटल वोटिंग टर्न आउट में और उछाल दर्ज किया गया। टर्न आउट बढ़ने का सीधा फायदा एक बार फिर बीजेपी ने उठाया। राजस्थान की सभी 25 सीटें (एक सीट आरएलपी से गठबंधन की थी) एक बार फिर बीजेपी ने अपने खाते में डाल दी और कांग्रेस एक बार फिर खाली हाथ रह गई। 2019 में टोटल वोटिंग टर्न आउट ऐतिहासिक रूप से 67.9 फीसदी पहुंच गया था। बीजेपी का वोट शेयर भी 2014 के मुकाबले 3.5 फीसदी और बढ़ गया था। इधर, कांग्रेस का वोट शेयर 2014 के मुकाबले 3.9 फीसदी बढ़ा तो सही, लेकिन एक भी सीट जिताने के काबिल नहीं रहा। सीटों के मामले में 2019 के चुनाव का नतीजा 2014 जैसा ही रहा।