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Rajasthan News: सीकर से लोकसभा उम्मीदवार अमराराम के राजनीति में 4 दशक से ज्यादा, जानें सियासत में उनकी कहानी

By: payal trivedi | Created At: 29 March 2024 05:37 AM


विपक्षी गठबंधन की तरफ से लोकसभा क्षेत्र सीकर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से अमराराम को चुनावी मैदान में उतारा गया हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं पूरे राजस्थान, खासतौर पर शेखावाटी (सीकर, झुंझनू व चूरू जिले का क्षेत्र) में किसानों के सामने संकट कोई भी हो, उसके हल की उम्मीद अमरा राम से होती है।

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सीकर: विपक्षी गठबंधन की तरफ से लोकसभा क्षेत्र सीकर (Rajasthan News) से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से अमराराम को चुनावी मैदान में उतारा गया हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं पूरे राजस्थान, खासतौर पर शेखावाटी (सीकर, झुंझनू व चूरू जिले का क्षेत्र) में किसानों के सामने संकट कोई भी हो, उसके हल की उम्मीद अमरा राम से होती है। चार बार विधायक रहे अमरा राम को सियासत में चार दशक से ज्यादा हो चुके हैं। 1996 से लेकर अब तक वह छह बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। हालाकि, जीत अब तक नसीब नहीं हुई है। अमरा राम बार-बार चुनाव हारकर भी अपने को क्षेत्र की राजनीति में प्रासंगिक बने हुए हैं। वे जुलाई 2013 से अखिल भारतीय किसान महासभा के उपाध्यक्ष हैं।

ऐसे रखा राजनीति में कदम

गांव में जन्मे अमरा कॉलेज के दिनों से ही छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। वे कम्युनिस्ट पार्टी के स्टूडेंट फेडरेशन से जुड़े थे। सक्रिय राजनीति में उतरने से पूर्व सरकारी स्कूल में प्राथमिक शिक्षक भी रहे। राष्ट्रीय स्तर के कबड्डी खिलाड़ी भी रह चुके हैं। माकपा के टिकट पर धोद से तीन बार विधायक रहे। एक बार दांतरामगढ़ सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता चौधरी नारायण सिंह को हरा चुके हैं। 2017 में अमरा ने छोटे किसानों की कर्ज माफी के लिए सीकर में आंदोलन किया। इस आंदोलन में न तो पुलिस की लाठी चली और न हिंसा हुई। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने किसानों की मांगें मानते हुए कर्जमाफी के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का पैकेज घोषित किया

किसानों के काम की गारंटी लेते हैं अमराराम

अमरा के कारण सीकर माकपा का लालगढ़ कहलाता है। वह किसानों के लिए संघर्ष का पर्याय हैं। अमरा सत्ता में रहें या न रहें, पर किसानों के काम की गारंटी लेते हैं। अब तक वह 9-10 बार किसानों के लिए आंदोलन कर चुके हैं और हर बार सरकार को झुकना पड़ा।

1996 में लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरे

जब जनता ने जानबूझकर हराया साल 1996 में अमरा राम पहली बार लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरे। पार्टी को पूरी उम्मीद थी कि वह भारी बहुमत से चुनाव जीतेंगे। लेकिन, अमरा चुनाव हार गए और तीसरे नंबर पर आए। जब कारण खोजे गए, तो सामने आया कि वोटरों ने ठान लिया था कि वे अमरा को दिल्ली नहीं जाने देंगे, क्योंकि अगर वाह दिल्ली चले गए तो उनके लिए पटवारी, तह‌सीलदार और बिजली वालों से कौन लड़ेगा। उनकी लोकप्रियता और किसानों के लिए लड़ना ही उनकी हार की वजह बन गई।

विधायकों के वेतन वृद्धि के खिलाफ लड़े

अमरा राम राजनीति में शुचिता और सादगी के समर्थक हैं। 2012 में जब राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने विधायकों की वेतन वृद्धि का प्रस्ताव रखा, तो 200 विधायकों में अकेले अमरा राम थे, जिन्होंने इस प्रस्ताव का विरोध किया था। अमरा ने कहा था, इससे जनता पर बेवजह 500 करोड़ का बोझ पड़ेगा। ऐसा करना शोभा नहीं देता है।