Rajasthan News: प्रदेश की हॉट सीट बाड़मेर से दिग्गज ने हासिल की जीत, जानें दिल्ली का कॉन्स्टेबल कैसे बना सांसद
लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम 4 जून को घोषित हो चुके हैं। इस बार के परिणाम 2019 के मुकाबले काफी चौंकाने वाले रहे।
दिल्ली में पुलिस कॉन्स्टेबल के तौर पर उम्मेदराम बेनिवाल की पहली नौकरी की शुरुआत हुई थी। कॉन्स्टेबल से लेकर अब सांसद बनने तक के सफर में काफी उतार-चढ़ाव आए। गांव वालों के कहने पर राजनीति में आए। तब पता नहीं था कि उनका ये सफर दिल्ली की संसद तक जाएगा। इसलिए जब वे जीते तो उन्होंने कहा था-दोबारा अपनी कर्मभूमि पर लौट रहा हूं...।
उम्मेदाराम बेनीवाल के अनुसार उनका जन्म बाड़मेर जिले के गिड़ा तहसील के पूनियों का तला गांव निंबाणियों की ढाणी में हुआ था। वे पुलिस में बड़े अधिकारी के पद पर जाना चाहते थे। 12वीं के बाद अलग-अलग एग्जाम दिए। इसके बाद 1995 में उनका सिलेक्शन दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल के पद पर हुआ।
वहां उन्होंने 10 साल करीब 2005 तक नौकरी की। कॉन्स्टेबल बने तो उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें किसी बड़े पद पर जाना है। साल 2000 में उन्होंने ग्रेजुएशन पूरी की। इसके बाद पुलिस भर्ती के लिए एग्जाम भी दिए लेकिन सफल नहीं हो पाए। साल 2005 में उन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़ दी औ बिजनेस करने का सोचा। किसी ने आइडिया दिया कि हैंडीक्राफ्ट का बिजनेस शुरू कर सकते हैं। इसके बाद साल 2006 में दिल्ली में हैंडीक्राफ्ट का बिजनेस शुरू किया तो काफी सफलता मिली। जर्मनी में भी स्टॉल लगाकर हैंडीक्राफ्ट के आइटम बेचे। इस बीच उनका गांव जाना हुआ। उस समय सरंपच के चुनाव आने वाले थे। गांव वालों ने मीटिंग बुलाई, जिसमें वे भी शामिल थे। वहां गांव वालों ने उन्हें सरपंच का पद ऑफर किया और कहा कि आपको सरपंच बनाएंगे और जिताएंगे भी।
इसके बाद साल 2010 के पंचायती राज चुनाव (Rajasthan News) में उम्मेदाराम बेनीवाल को ही मैदान में उतरना था। लेकिन, उनके पूनियों का तला ग्राम पंचायत में महिला सीट आरक्षित हुई। गांव वाले जिद पर थे बेनीवाल के परिवार से ही सरपंच बनाएंगे तो पत्नी पुष्पादेवी को चुनावी मैदान में उतारा और गांव के लोगों ने मिलकर सरपंच बनाया। यहीं से उम्मेदाराम बेनीवाल के राजनीति की शुरुआत हुई। इसके बाद गांव में ही कंस्ट्रक्शन का काम शुरू किया।
इसके बाद साल 2018 में हनुमान बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) बनाई। उम्मेदाराम बेनीवाल ने भी आरएलपी जॉइन की। बेनीवाल ने बताया इसके बाद बायतु से दो बार चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। दोनों चुनाव मजबूती से ईमानदारी से लड़ा था। लेकिन, वहां देखा कि अकेले लड़कर पार पड़ना मुश्किल है। इस बार के चुनाव में आरएलपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। लेकिन, इससे पहले उम्मेदाराम बेनीवाल ने आरएलपी को छोड़ कांग्रेस का हाथ थामा और उन्हें टिकट दिया गया। इस चुनाव में 1 लाख 18 हजार वोटों से उन्होंने रविंद्र सिंह भाटी को हराया।
इसके बाद साल 2018 में विधायक हनुमान बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाई। उम्मेदाराम बेनीवाल भी उससे जुड़ गए। 2018 के विधानसभा चुनाव में बायतु सीट से उम्मेदाराम बेनीवाल को आरएलपी ने टिकट दी। इस सीट पर कांग्रेस से हरीश चौधरी, बीजेपी से कैलाश चौधरी और आरएलपी उम्मेदाराम बेनीवाल के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हुआ। यह चुनाव हरीश चौधरी 13803 वोटों से जीत गए। उम्मेदाराम बेनीवाल (43900 मत मिले) हार गए। वहीं कैलाश चौधरी तीसरे नंबर पर रहे।
इसके बाद साल 2020 के पंचायती राज चुनाव में उम्मेदाराम बेनीवाल ने जिला परिषद सदस्य 34 से आरएलपी से चुनाव लड़ा और जीत गए। लगातार 5 साल तक बायतु विधानसभा में रहे। लोगों के बीच रहकर उनकी समस्याओं को उठाया। जिला परिषद में अपनी मुखर आवाज से सबको प्रभावित किया।
साल 2023 के विधानसभा चुनाव में उम्मेदाराम बेनीवाल ने आरएलपी सिंबल से फिर बायतु विधानसभा से चुनाव लड़ा। इस बार भी मुकाबला त्रिकोणीय था। कांग्रेस से हरीश चौधरी, बीजेपी से बालाराम मूंढ और आरएलपी से उम्मेदाराम बेनीवाल थे। मुकाबला हरीश चौधरी और उम्मेदाराम के बीच हुआ। उम्मेदाराम (75911 वोट मिले) नजदीक मुकाबले में केवल 910 वोटों से हार गए।
उम्मेदाराम बेनीवाल ने विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी। विधानसभावार नेताओं से मिले और महंत व संतों का आशीर्वाद लेकर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की। लगातार फील्ड में डटे रहे। इस दौरान निर्दलीय विधायक से भी मुलाकात की। इस बीच कांग्रेस और आरएलपी में गठबंधन की सुगबुगाहट चल रही थी। आरएलपी बाड़मेर और नागौर सीट गठबंधन में मांग रही थी। कांग्रेस के स्थानीय नेता बाड़मेर सीट आरएलपी को नहीं देना चाहती थे। इसके चलते गठबंधन टलता गया। एक सामाजिक प्रोग्राम में पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और उम्मेदाराम बेनीवाल शामिल हुए। वहां से उम्मेदाराम बेनीवाल के कांग्रेस में आने की अटकलें लगनी शुरू हो गई। हरीश चौधरी और पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी ने इन अटकलों को सही साबित करते हुए उम्मेदाराम को कांग्रेस में शामिल करवा दिया। वहां से टिकट भी फाइनल हो गई।
बाड़मेर लोकसभा सीट पर ट्रेंड रहा है की बायतु से विधानसभा चुनाव हारने वाला सांसद बनता है। 2013 में कर्नल सोनाराम चौधरी बायतु से चुनाव हारे फिर बीजेपी में शामिल होकर 2014 चुनाव लोकसभा लड़ा और कर्नल सोनाराम चौधरी ने पूर्व जसवंत सिंह को हराया। 2018 में कैलाश चौधरी ने बायतु से विधानसभा का चुनाव लड़ा और हार गए। 2019 लोकसभा चुनाव लड़ा और कर्नल मानवेन्द्र सिंह को हराकर जीत गए। 2023 विधानसभा चुनाव में उम्मेदाराम बेनीवाल ने बायतु से चुनाव लड़ा और हार गए। लेकिन अब 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ा और बड़े अंतर से जीत गए।