जातीय गणना पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक हफ्ते का समय मांगा था। उनकी इस मांग को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था।
तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा था कि हम इस पक्ष या उस पक्ष की ओर से नहीं हैं, लेकिन इस प्रक्रिया के कुछ नतीजे हो सकते हैं और इसलिए हम अपना सबमिशन दाखिल करना चाहते हैं।
बता दें कि हाईकोर्ट के एक अगस्त के फैसले के खिलाफ विभिन्न गैर सरकारी संगठनों की ओर से सर्वोच्च अदालत में याचिकाएं दायर हैं। इस मामले में एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत से अनुरोध किया था कि वह राज्य सरकार को डाटा रिलीज नहीं करने का निर्देश दे।
सर्वे का काम पूरा- बिहार सरकार
इस मामले में 18 अगस्त को कोर्ट मे सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से बताया गया था कि बिहार में सर्वे का काम पूरा हो चुका है। आंकड़े भी ऑनलाइन अपलोड किए जा रहे हैं। इसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने बिहार में हो रही जातीय गणना का ब्योरा रिलीज नहीं करने की मांग कर दी थी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को भी खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि बिहार सरकार का पक्ष सुने बिना कोई रोक नहीं लगाई जा सकती।
देश में जातीय जनगणना 1931 में हुई थी
भारत में सबसे पहले जातीय जनगणना 1931 में हुई। 1941 में भी इसका डेटा इकट्ठा किया गया, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। 2011 में जातीय व सामाजिक-आर्थिक गणना हुई, लेकिन कई विसंगतियों के चलते इसके आंकड़े जारी नहीं किए गए।
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