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महात्मा गांधी को कोसने वाले गलत, बापू क्यों महान ?

By: Sanjay Purohit | Created At: 30 January 2024 08:05 AM


ऐसे अनगिनत बुद्धिजीवी और विद्वान हैं, जो गांधी जी को असाधारण रूप से महान मानते थे।

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आजकल अपने ही देश में गांधी जी पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। कोई उन्हें अंग्रेजों का एजेंट कहता है तो कोई यौन विकृति का शिकार बताता है। एक अभियान भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस के प्रशंसकों द्वारा चलाया जा रहा है कि आजादी इन जैसे क्रांतिकारियों के कारण मिली, गांधी के कारण नहीं। कहा जा रहा है कि भगत सिंह को फांसी के फंदे से गांधी बचा सकते थे, अगर वह लॉर्ड इरविन के साथ चल रही अपनी वार्ता के दौरान यह स्टैंड लेते कि भगत सिंह को फांसी हुई तो वार्ता टूट जाएगी। इसी तरह यह भी कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस के त्रिपुरी सम्मेलन में कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने पर गांधी ने ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी कि सुभाष त्याग-पत्र देने को विवश हो गए।

बोस ने कहा था राष्ट्रपिता

त्रिपुरा कांग्रेस में सुभाष बोस चुनाव जीत जरूर गए, परंतु उसी सम्मेलन में पंत प्रस्ताव पारित हुआ कि कांग्रेस कार्यकारिणी का गठन गांधी जी की सहमति के बगैर नहीं होगा। पेच यहीं फंस गया। किंतु गांधी जी को राष्ट्रपिता सुभाष चंद्र बोस ने ही कहा था। उन्होंने यह भी कहा कि यदि उन्हें पूरी दुनिया का समर्थन प्राप्त हो जाए और महानतम व्यक्ति का न मिले तो उसका लाभ क्या।

सावरकर, कृपलानी की राय

विनायक दामोदर सावरकर का तो स्पष्ट मत था कि बुद्ध और गांधी ने अहिंसा-अहिंसा कर देश को नपुंसक बनाया है। उनका मानना था कि भारत की परंपरा रामायण-महाभारत की परंपरा है। अन्याय के विरुद्ध राम और कृष्ण दोनों ने युद्ध किया। फिर अहिंसा की बकवास कहां से आ गई? आचार्य जेबी कृपलानी ने भी गांधी जी से कहा था, ‘मैं इतिहास का प्राध्यापक हूं। मैंने पूरी दुनिया का इतिहास पढ़ा है। कहीं स्वतंत्रता बिना हथियार उठाए नहीं मिली है।’ इस पर गांधी जी ने कहा था, ‘तुम इतिहास पढ़ते हो, इतिहास पढ़ाते हो। लेकिन मैं इतिहास बनाने जा रहा हूं।

न पद, न पैसा/

गांधी जी ने जिंदगी में कभी सत्ता अपने हाथ में नहीं ली। न पद लिया, न पैसे बनाए, न परिवार के लिए कुछ किया। वह सही मायने में संत थे। आलोचना किसी की हो सकती है, लेकिन वह तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया जबकि उनका नाम किसी भी प्रदेश कांग्रेस कमिटी ने नहीं भेजा था। इस पर सवाल खड़े होते हैं। लेकिन गौर करने की बात यह है कि गांधी जी ने ऐसा स्वार्थवश नहीं किया था भले ही इसे उनकी भूल बताया जाए।