Election Result 2024: हरियाणा में बराबरी पर रहे बीजेपी और कांग्रेस, भाजपा का चेहरे बदलने का दांव फेल, जानें कांग्रेस में गुटबाजी समेत 4 बड़ी वजहें?
लोकसभा चुनाव के नतीजे कल यानि की 4 जून को घोषित हो चुके हैं। इस बार कई राज्यों के परिणाम चौंकाने वाले रहे हैं।
चलिए जानते हैं वे 7 बड़े कारण कारण जिनकी वजह से भाजपा 5 सीटें हारी…
1.सबसे पहले बात सत्ता विरोधी लहर की : राज्य में 10 साल से सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार के प्रति लोगों में जबर्दस्त एंटी इनकंबेंसी है, ये लोकसभा चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया। जनता अपनी नाराजगी जगह-जगह खुलकर जाहिर भी करती रही लेकिन राज्य इकाई के नेता बिल्ली को देखकर आंखें बंद कर लेने वाले कबूतर की तरह उसकी अनदेखी करते रहे। ऐसे में जैसे ही मौका मिला, पब्लिक ने वोटों के जरिये अपनी बात कह दी।
2. बीजेपी की हार का दूसरा बड़ा कारण है जाटों और किसानों की नाराजगी: दरअसल हरियाणा के जाट और किसान भाजपा से नाराज हैं। इस फैक्ट से वाकिफ होने के बावजूद, राज्य सरकार में न केवल इन दोनों वर्गों की अनदेखी जारी रही, बल्कि गैरजाट की राजनीति को बढ़ावा देते हुए एक तरह से इनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम भी किया गया। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान सिरसा संसदीय हलके समेत कई दूसरी जगहों पर BJP नेताओं का विरोध करने वाले किसानों पर धड़ाधड़ मुकदमे दर्ज कराए गए। इसका नुकसान सिरसा, हिसार, अंबाला और कुछ हद तक कुरुक्षेत्र में पार्टी को चुकाना पड़ा।
3.चेहरे बदलने का दांव फेल होना बीजेपी की हार का तीसरा बड़ा कारण रहा क्योंकि लोकसभा चुनाव की घोषणा से महीनेभर पहले BJP के केंद्रीय नेतृत्व को हरियाणा की ग्राउंड रिएलिटी का इनपुट मिल गया था। इसके बाद पार्टी ने सिरसा, सोनीपत और करनाल में अपने सीटिंग सांसदों के टिकट काट दिए। राज्य में CM चेहरा भी बदल दिया गया लेकिन हालात से निपटने के इन टेंपरेरी तौर-तरीकों को लोगों ने खारिज कर दिया। अंबाला लोकसभा सीट से भाजपा कैंडिडेट बंतो कटारिया को प्रचार के दौरान विरोध का सामना करना पड़ा था। किसानों ने नारेबाजी करते हुए काले झंडे भी दिखाए थे।
4. बीजेपी की हार का चौथा बड़ा कारण बेरोजगारी की मार भी रहा: बढ़ती बेरोजगारी इस चुनाव में भाजपा कैंडिडेट्स पर भारी पड़ गई। बेरोजगारी दर में हरियाणा देशभर के राज्यों में टॉप पर पहुंच गया। 21 जुलाई 2023 को खुद मोदी सरकार ने संसद में स्वीकार किया कि हरियाणा में बीते 8 बरसों में बेरोजगारी दर 3 गुना बढ़ चुकी है। तत्कालीन श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री रामेश्वर तेली ने संसद में बताया कि हरियाणा में वर्ष 2013-14 (प्रदेश में तब कांग्रेस की सरकार थी) में बेरोजगारी दर 2.9% थी जो 2021-22 में बढ़कर 9% पर पहुंच गई। इसी टाइम पीरियड में राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी दर 4.1% थी। इसके अलावा पिछले साढ़े 9 बरसों में राज्य की मनोहर सरकार ने जो भर्तियां निकालीं, उनमें से ज्यादातर कोर्ट-कचहरी के कारण सिरे नहीं चढ़ पाई। कांग्रेस नेता इसे सही तरह भुनाने में कामयाब रहे।
5. पोर्टल राज से परेशानी होना भी बीजेपी के हार का कारण बना दरअसल हरियाणा में BJP के साढ़े 9 साल के शासनकाल में सरकारी स्कीम्स को ऑनलाइन करने और करप्शन रोकने के नाम पर धड़ाधड़ पोर्टल शुरू किए गए। CM रहते हुए मनोहर लाल खट्टर का इस पर खास जोर रहा। आज राज्य में लगभग हर सरकारी योजना से जुड़ा अलग पोर्टल है। 13 सितंबर 2023 को तो खट्टर ने एक साथ 6 स्कीम शुरू करते हुए उनके पोर्टल शुरू कर दिए थे। इनमें CM आवास योजना व पोर्टल, नो-लिटिगेशन पोर्टल, प्रो-ओबीसी प्रमाण पत्र पोर्टल, ई-रवन्ना पोर्टल व ई-भूमि का पोर्टल शामिल था। खेतीबाड़ी करने वालों को बीज लेने से लेकर फसल बेचने और खराब फसलों के मुआवजे के लिए भी पोर्टल पर अप्लाई करना अनिवार्य बना दिया गया। इससे करप्शन तो कम हुआ लेकिन इंटरनेट कनेक्टिवटी और दूसरे इश्यूज के कारण बहुत सारे लोग परेशान भी होने लगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने यह मुद्दा लगातार उठाया। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि हरियाणा में सरकार की जगह पोर्टल-राज चल रहा है। राज्य की भाजपा सरकार ने परिवार पहचान पत्र (PPP) की त्रुटियों को सुधारने समेत कई दिक्कतों को दूर भी किया लेकिन यह नाकाफी साबित हुआ।
6. अग्निवीर का मुद्दा बीजेपी की हार में सबसे अहम कड़ी रहा क्योंकि हरियाणा से हर साल बड़ी संख्या में नौजवान सेना में जाते हैं। राज्य के रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, झज्जर, रोहतक, भिवानी, सोनीपत से बड़ी संख्या में लोग सेना में जाते हैं। दक्षिणी हरियाणा खासकर अहीरवाल में सेना की वर्दी पहनने को लेकर खास तरह का दीवानापन दिखता है। मोदी सरकार ने जब सेना में भर्ती से जुड़ी अग्निवीर स्कीम लॉन्च की, उस समय अकेले अहीरवाल में लगभग 50 हजार युवा आर्मी भर्ती की तैयारी कर रहे थे। जाहिर है कि ये युवा और इनके परिवारवाले अग्निवीर स्कीम के खिलाफ थे। इस नाराजगी को भाजपा ने गंभीरता से नहीं लिया जबकि कांग्रेस ने इसे अच्छी तरह भुनाया।
7. विधायकों-मंत्रियों का वर्किंग स्टाइल भी बीजेपी की हार कारण बना दरअसल हरियाणा में BJP विधायकों और मंत्रियों के वर्किंग स्टाइल को लेकर भी लोगों में नाराजगी रही। यही वजह रही कि पार्टी ने जब मनोहर लाल को हटाकर नायब सिंह सैनी को CM बनाया तो ज्यादातर मंत्री भी बदल डाले। हालांकि इससे कोई खास फायदा पार्टी को होता हुआ नजर नहीं आया। करीब 2 साल पहले केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना के खिलाफ देश में विरोध के स्वर उठ थे। ये चिंगारी हरियाणा तक भी पहुंची थी। भड़के युवाओं ने कई 5 गाड़ियों को जला दिया था।
अब बात कांग्रेस की…आपको बताएंगे वो 4 कारण जिनकी वजह से पार्टी 5 सीटें जीती…
1. कांग्रेस की जीत का बड़ा कारण है लोगों की नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाना: दरअसल कांग्रेस के नेता BJP से नाराज लोगों के गुस्से को अपने पक्ष में भुनाने में कामयाब रहे। लोगों के मूड को भांपते हुए पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर सैलजा और रणदीप सुरजेवाला तक, सारे कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा सरकार को उसकी नीतियों के लिए सीधे निशाने पर रखा। जनता से जुड़े मुद्दे उठाने के कारण आम पब्लिक ने भी उनसे कनेक्ट महसूस किया। भाजपा सरकार की नीतियों को कोसने के साथ-साथ हुड्डा अपनी हर सभा में यह भी बताते रहे कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो वह हर वर्ग के लिए क्या-क्या करेंगे। उनका ये फार्मूला काम कर गया।
2. कांग्रेस की जीत का दूसरा बड़ कारण है जाटों-किसानों की एकमुश्त वोटिंग: दरअसल जाटों और जटसिखों के दबदबे वाली हिसार, सिरसा, सोनीपत, अंबाला और रोहतक सीट पर कांग्रेस की जीत से साफ हो गया कि यहां इस बिरादरी ने कांग्रेस के पक्ष में एकमुश्त वोटिंग की। वह जाटों का प्रतिनिधित्व करने का दम भरने वाले सियासी दलों के झांसे में नहीं आए। अगर सिरसा सीट पर इनेलो कैंडिडेट संदीप लोट को छोड़ दें तो बाकी चारों सीटों पर तीसरे नंबर पर रहने वाले कैंडिडेट को 25 हजार वोट भी नहीं मिले। इससे साफ है कि जाटों-किसानों का वोट बिखरा नहीं।
3. सैलजा-हुड्डा फैमिली की पर्सनल पकड़ (Election Result 2024) भी कांग्रेस की जीत की तीसरी बड़ी वजह बनी: सिरसा सीट पर कांग्रेस की सैलजा 2 लाख 68 हजार 497 वोटों से जीतीं। यहां उनके परिवार का व्यक्तिगत रसूख है और इसका फायदा उन्हें मिला। यहां सैलजा को टिकट देने का फैसला भी ग्राउंड से उठी डिमांड के बाद ही लिया गया था। इसी तरह रोहतक सीट पर कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा ने लगभग साढ़े 3 लाख वोटों से जीत दर्ज की। विनिंग मार्जिन के लिहाज से कांग्रेस को मिली पांचों सीटों में रोहतक पहले नंबर पर रही। दीपेंद्र की ये जीत कांग्रेस से ज्यादा, रोहतक बेल्ट में हुड्डा फैमिली की अपनी पकड़ का नतीजा है। 2019 के आम चुनाव में ओवर कॉन्फिडेंस के कारण मात खा जाने वाले दीपेंद्र ने इस बार कोई चूक नहीं की।
4. अंबाला में कांग्रेस की एकजुटता से हुई जीत हासिल : पूरे हरियाणा में चुनाव के दौरान अगर कांग्रेस कहीं एकजुट नजर आई तो वह अंबाला लोकसभा हलका रहा। यहां के नए सांसद वरुण चौधरी मुलाना को टिकट बेशक हुड्डा कैंप की पैरवी से मिला लेकिन सैलजा गुट में भी वरुण की अच्छी पैठ है। पूर्व मंत्री निर्मल चौधरी की चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस में हुई वापसी का फायदा भी वरुण को मिला।
अब आपको बताते हैं वो 4 कारण जिनके चलते कांग्रेस 5 सीटों पर हार गई
1. करनाल में कमजोर कैंडिडेट उतारना कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना: बता दें कि कांग्रेस ने करनाल लोकसभा सीट पर अपने यूथ विंग के नेता दिव्यांशु बुद्धिराजा को टिकट दिया। दिव्यांशु के नाम का ऐलान होते ही क्लियर हो गया था कि कांग्रेस ने इस सीट पर BJP के मनोहर लाल खट्टर को एक तरह से वॉकओवर दे दिया है। करनाल के कांग्रेसी नेताओं के तमाम तरह के असहयोग के बावजूद दिव्यांशु 4 लाख 79 हजार से ज्यादा वोट लेने में कामयाब रहे। अगर कांग्रेस इस सीट पर किसी बड़े चेहरे को उतारती और करनाल के नेता उसका साथ देते तो भाजपा को यहां परेशानी हो सकती थी।
2. कांग्रेस में गुटबाजी बनी हार का दूसरा बड़ा कारण: हरियाणा में कांग्रेसी नेताओं की धड़ेबंदी जगजाहिर है और पार्टी ने इसका नुकसान कम से कम 2 सीटें गवांकर चुकाया। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर पूर्व मंत्री किरण चौधरी और गुरुग्राम में पूर्व कैबिनेट मंत्री कैप्टन अजय यादव ने टिकट कटने के बाद अपनी नाराजगी खुलकर जताई। किरण चौधरी ने तो हुड्डा कैंप पर उनकी सियासी हत्या की साजिश रचने जैसे आरोप तक लगा डाले। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार राव दान सिंह की हार का अंतर 41 हजार 510 वोट रहा। भिवानी जिले की तीन में से दो सीटों पर भाजपा को लीड मिली। इनमें किरण चौधरी की तोशाम सीट शामिल रही। अगर पार्टी के नेता एकजुटता दिखाते तो यहां रिजल्ट कांग्रेस के पक्ष में भी आ सकता था। गुरुग्राम सीट पर भी यही कहानी रही। यहां कांग्रेस कैंडिडेट राजबब्बर 75 हजार वोट से हारे। लालू यादव के समधी कैप्टन अजय यादव इस सीट पर लंबे अर्से से एक्टिव थे लेकिन पार्टी ने ऐन मौके पर उनकी जगह राजबब्बर को टिकट थमा दिया। इससे कैप्टन नाराज हो गए। राजबब्बर की इलेक्शन कैंपेनिंग के दौरान अजय यादव बहुत कम मौकों पर नजर आए। फरीदबाद सीट पर भी टिकट न मिलने के कारण पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समधी करण दलाल की नाराजगी देखने को मिली।
3. चौधर की लड़ाई बनी कांग्रेस की हार का तीसरा कारण : लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी नेताओं के बीच चलने वाली चौधर की लड़ाई भी जमकर देखने को मिली। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह शुरू से आखिर तक बांगर बेल्ट में हिसार के उम्मीदवार जयप्रकाश जेपी को नीचा दिखाने की कोशिश करते नजर आए। हालांकि चुनाव नतीजों में जेपी को सबसे बड़ी लीड बीरेंद्र सिंह के गढ़ उचाना से ही मिली। जयप्रकाश जेपी के हुड्डा कैंप से जुड़े होने के कारण सैलजा, किरण चौधरी और रणदीप सुरजेवाला की तिकड़ी ने हिसार में एक सभा तक नहीं की। सैलजा सिरसा तक सिमटी रही तो रणदीप सिरसा के अलावा कुरुक्षेत्र एरिया में एक्टिव रहे।
4. कुरूक्षेत्र की सीट AAP को देना पड़ा भारी : कांग्रेस ने I.N.D.I.A. अलायंस के तहत कुरुक्षेत्र सीट आम आदमी पार्टी (AAP) को दी। इसलिए यहां कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गायब रहा। आम आदमी पार्टी से उसकी हरियाणा इकाई के प्रदेशाध्यक्ष सुशील गुप्ता कुरुक्षेत्र के करण में उतरे तो पार्टी की पूरी लीडरशिप यहां डट गई। कांग्रेस से भूपेंद्र हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला ने सुशील गुप्ता के लिए प्रचार किया लेकिन राज्य की दूसरी किसी सीट पर AAP नेताओं ने कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए ऐसा जोर नहीं लगाया। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि AAP ने बाकी 9 सीटों पर अपना कितना वोटबैंक कांग्रेस के पक्ष में शिफ्ट कराया? हां, कुरुक्षेत्र में सुशील गुप्ता को कांग्रेसी कैडर के वोट जरूर मिले।