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घोसी उपचुनाव, सपा की जीत में BSP की ऐसे रही अहम भूमिका,पढ़िए पूरी खबर

By: Ramakant Shukla | Created At: 09 September 2023 06:54 AM


उत्तर प्रदेश में घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव का रिजल्ट आ गया है। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने बीजेपी के दारा सिंह चौहान को हरा दिया है। इस सीट पर उपचुनाव की घोषणा होने के बाद बीजेपी और सपा ने अपने उम्मीदवारों का एलान कर दिया था। वहीं कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी की ओर से ओर से प्रत्याशी ही नहीं उतारे गए। सपा के इंडिया गठबंधन में होने से साफ था कि कांग्रेस का समर्थन उनके प्रत्याशी को मिलेगा।

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उत्तर प्रदेश में घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव का रिजल्ट आ गया है। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने बीजेपी के दारा सिंह चौहान को हरा दिया है। इस सीट पर उपचुनाव की घोषणा होने के बाद बीजेपी और सपा ने अपने उम्मीदवारों का एलान कर दिया था। वहीं कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी की ओर से ओर से प्रत्याशी ही नहीं उतारे गए। सपा के इंडिया गठबंधन में होने से साफ था कि कांग्रेस का समर्थन उनके प्रत्याशी को मिलेगा। वहीं बीएसपी ने तो एनडीए और न इंडिया गठबंधन में है। ऐसे में पार्टी ने किसी भी प्रत्याशी का समर्थन नहीं किया। इसकी वजह से सभी की निगाहें बसपा के वोट बैंक पर टिक गई थी। पहले से ही यह माना जा रहा था कि इसके बीएसपी के मतदाता चुनावी गणित को बदल सकते हैं। जातीय समीकरण के जरिए चुनाव लड़ रही सपा और बीजेपी की निगाहें बसपा के कैडर दलित वोटरों पर थीं।

बसपा ने चला था ये सियासी दांव

सपा और बीजेपी प्रत्याशी के बीच दिख रही सीधी जंग में जातियां भी दो धड़ों में बंटी दिख रही थी। एक मात्र बसपा का कैडर वोट कहे जाने वाले दलित मतदाताओं का रूझान बहुत कुछ तय करेगा, इस बात के संकेत मिल रहे थे। इस उपचुनाव में बसपा का प्रत्याशी नहीं होने से यह माना जा रहा था कि उसका वोटर जिधर जाएगा उसका पलड़ा भारी होगा। उपचुनाव में मतदान से पहले बसपा ने बड़ा सियासी दांव चल दिया था कि बसपाई या तो घर बैठेंगे और यदि बूथ तक जाएंगे तो नोटा दबाएंगे। बसपा के इस फैसले से घोसी के उपचुनाव में एक अलग स्थित बनी क्योंकि इस सीट पर दलित मतदाताओं की संख्या ज्यादा है जो चुनाव को प्रभावित करने का दम रखते थे। पार्टी का कहना था कि हमारी पूरी टीम आने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर लगी है। इस उपचुनाव में बसपा के लोग भाग नहीं लेंगे। क्योंकि यह चुनाव प्रलोभन देकर विधायक तोड़कर हो रहा है, जिसका भार जनता पर जा रहा है, इसलिए इसका बसपा विरोध करती है। मायावती को निर्देश था कि बसपा के लोग अगर अपने मत का प्रयोग करेंगे तो सिर्फ नोटा के ऑप्शन को ही दबाएंगे।

बीएसपी कैसे बनी गेमचेंजर?

इसके बाद से ही यह तय हो गया था कि घोसी उपचुनाव में भले ही मुकबला सपा और बीजेपी के बीच में है, लेकिन बसपा का वोटर इस चुनाव का गेमचेंजर होगा। पिछले चुनाव की स्थित यही बयां कर रही थी. बीते तीन चुनाव के परिणाम भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं। 2017 में बसपा प्रत्याशी अब्बास अंसारी को 81,295 मत मिले थे जबकि 2019 के उपचुनाव में बसपा के अब्दुल कय्यूम अंसारी को 50,775 वोट मिले थे। वहीं 2022 में यहां बसपा प्रत्याशी वसीम इकबाल को 54,248 वोट प्राप्त हुए थे। इन आंकड़ों से यही पता चल रहा था कि दलित मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में थे। इससे यह भी साफ हो गया कि कहीं न कहीं बीएसपी का वोट सपा की ओर शिफ्ट हुए, जिससे उनके उम्मीदवार सुधाकर सिंह को जीत मिली। सुधाकर सिंह की जीत में बीएसपी के वोट बैंक को इस तरह भी समझा जा सकते है कि उन्हें 42759 वोटों से जीत मिली। वहीं पिछले दो चुनाव में इस सीट पर बीएसपी को इससे थोड़े से ज्यादा 50 के आस-पास वोट मिले थे। इससे यह पता चलता है कि सपा की जीत में बीएसपी के वोट बैंक का काफी योगदान रहा।

घोसी सीट का जातीय समीकरण

बता दें कि इस क्षेत्र में सर्वाधिक करीब 90 हजार दलित मतदाता हैं। क्षेत्र में करीब 90 हजार मुस्लिम मतदाता बताए जाते हैं। पिछड़े वर्ग में 50 हजार राजभर, 45 हजार नोनिया चौहान, करीब 20 हजार निषाद, 40 हजार यादव, 5 हजार से अधिक कोइरी और करीब 5 हजार प्रजापति वर्ग के वोट हैं। अगड़ी जातियों में 15 हजार से अधिक क्षत्रिय, 20 हजार से अधिक भूमिहार, 8 हजार से ज्यादा ब्राह्मण और 30 हजार वैश्य मतदाता हैं.