हिन्दू धर्म में आप लोगों को देखा होगा कि सभी देवी-देवताओं और मंदिरों की लोग पूरी परिक्रमा करते हैं. वहीं शिवलिंग की आधी परिक्रमा करते हैं. शिव आदि देव हैं, शिव की पूजा शिव मूर्ति और शिवलिंग दोनों रूपों में की जाती है. लेकिन शास्त्रों में शिवलिंग की पूजा के नियम कुछ अलग हैं, जिसमें कुछ अपनी मर्यादाएं भी निर्धारित हैं. शिवलिंग की आधी परिक्रमा को शास्त्र संवत माना गया है. इसे चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है. परिक्रमा के दौरान जलाधारी को लांघना मना होता है. इसके पीछे क्या धार्मिक वजह है.
शिव पुराण समेत कई शास्त्रों में शिवलिंग की आधी परिक्रमा का जिक्र किया गया है. इसका धार्मिक कारण है कि शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाया जाता है. इस जल को अत्यंत पवित्र माना गया है. ये जल जिस मार्ग से निकलता है, उसे निर्मली, सोमसूत्र और जलाधारी कहा जाता है.
जलाधारी का महत्व
ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग इतना शक्तिशाली है कि उस पर चढ़ाए गए जल में भी शिव और शक्ति की ऊर्जा के कुछ अंश सम्मिलित हो जाते हैं. ऐसे में जल में इतनी ज्यादा ऊर्जा बढ़ जाती है कि यदि व्यक्ति इसे लांघें तो ये ऊर्जा लांघते समय उसके पैरों के बीच से उसके शरीर में प्रवेश कर जाती है. इसकी वजह से व्यक्ति को वीर्य या रज संबन्धित शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है. इसलिए शास्त्रों में जलाधारी को लांघना घोर पाप के समान माना गया है.