भोपाल गैस त्रासदी के 41 साल बाद, जहरीले कचरे से निकली राख एक नई मुसीबत बन गई है। मध्यप्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्डके सामने 899 टन राख को ठिकाने लगाने की चुनौती है। यह राख यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकले कचरे को जलाने से बनी है। इस साल मई और जून में, पीथमपुर के एक ट्रीटमेंट प्लांट में 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा जलाया गया था। इस प्रक्रिया से 899 मीट्रिक टन राख और अवशेष निकले, जो मूल कचरे से लगभग तीन गुना ज्यादा थे। 55 दिन तक चली यह भस्मीकरण प्रक्रिया खत्म हुए कई महीने बीत चुके हैं, लेकिन यह राख अभी भी लीक-प्रूफ डिब्बों में एक शेड के अंदर रखी हुई है।
हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक
अक्टूबर में, हाईकोर्ट ने सरकार के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था जिसमें राख को इंसानी बस्तियों से 500 मीटर दूर रखने की बात कही गई थी। अधिकारियों का कहना है कि इस नए फैसले से राख को ठिकाने लगाने की योजना अधर में लटक गई है।
कचरे के निपटान को लेकर भ्रम की स्थिति
खतरनाक कचरे के निपटान को लेकर भारी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। जब तक चीजें स्पष्ट नहीं हो जातीं, कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया जा सकता।