


उत्तर प्रदेश में दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अभी से ही सियासी गोटियां सेट की जाने लगी है. बसपा प्रमुख मायावती अपने सियासी वजूद और अपने वोटों को बचाए रखने की चुनौती से जूझ रही. बसपा के बिखरते दलित वोटबैंक को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव साधकर अपनी सियासी नैया पार लगाना चाहते हैं. रामजीलाल के साथ खड़े होने का मामला हो या फिर इंद्रजीत सरोज के बयान, इसे सपा के दलित वोट जोड़ने के नजरिए से देखा जा रहा. सपा की दलित पॉलिटिक्स से मायावती बेचैन नजर आ रही हैं. ऐसे में मायावती दलित समाज के साथ मुस्लिमों को भी सपा से दूर रहने की नसीहत दे रही हैं.
दलितों को सपा से दूर रहने की नसीहत
बसपा प्रमुख मायावती ने गुरुवार को ट्वीट कर सपा को निशाने पर लिया. उन्होंने कहा कि विदित है कि अन्य पार्टियों की तरह सपा भी अपने दलित नेताओं को आगे करके तनाव और हिंसा का माहौल पैदा करने वाले बयान दिलवाए जा रहे हैं, जिस पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा. ये संक्रीण और स्वार्थ की राजनीति है. सपा भी दलितों के वोटों के स्वार्थ की खातिर किसी भी हद तक जा सकती है. दलितों के साथ-साथ ओबीसी और मुस्लिम समाज आदि को इनके किसी भी उग्र बहकावे में नहीं आकर, इन्हें इस पार्टी की राजनीतिक हथकंडों के बचना चाहिए.
मायावती ने आगे कहा कि ऐसी पार्टियों से जुड़े अवसरवादी दलित नेताओं को दूसरों के इतिहास पर टीका-टिप्पणी करने की बजाय यदि वे अपने समाज के संतों, गुरुओं और महापुरुषों की अच्छाईयों एवं उनके संघर्ष के बारे में बताएं तो यह उचित होगा, जिनके कारण ये लोग किसी लायक बने हैं. इस तरह से मायावती ने दलित समाज को सपा के दलित नेताओं के बहकावे में आने से बचने की नसीहत दे रही हैं. साथ ही मुस्लिम और ओबीसी को भी सपा से दूर रहने की अपील कर रही हैं.
सपा की दलित सियासत से मायावती बेचैन?
2024 लोकसभा चुनाव में अखिलेश अपने पीडीए के दांव से 37 सीटें जीतने में कामयाब रहे. सपा ने पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वाली राजनीति से ही 2027 का चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है. अखिलेश की नजर पीडीए राजनीति को और मजबूत करने की है, जिसके लिए उनकी नजर मायावती के वोटरों पर है. अखिलेश यादव दो तरह से इस मिशन में जुटे हैं. सपा में दलित समाज के नेताओं को तवज्जो दी जा रही है. अखिलेश अपने आस-पास अब यादव और मुस्लिम नेताओं कों रखने के बजाय दलित नेताओं को साथ लेकर चलते हैं. इसी कड़ी में सपा ने बसपा के पुराने नेता दद्दू प्रसाद को अपने साथ मिलाया है.
बसपा का घटता सियासी जनाधार
बसपा अपने सियासी इतिहात में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. बसपा को वोट चुनाव दर चुनाव घटता जा रहा है. 2024 में बसपा का खाता नहीं खुला और 2022 में पार्टी को सिर्फ एक विधानसभा सीट पर ही जीत मिली थी. बसपा का सियासी ग्राफ गिरकर 9.39 फीसदी पर पहुंच गया है. बसपा के बिखरते दलित वोटबैंक पर सपा की नजर है और उसे जोड़ने के लिए अखिलेश हर एक दांव आजमा रहे हैं. अखिलेश यादव ने तो अपनी पार्टी का डीएनए तक बदलने का मन बना लिया है और यादव, पिछड़े, अल्पसंख्यक के सात दलित वोटबैंक को जोड़ना चाहते हैं ताकि बीजेपी को सत्ता की हैट्रिक लगाने से रोक सके.