


डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में लौटना, अमेरिका के लिए बहुत बुरा माना जा रहा है। लोग सोचते हैं कि ट्रंप बिना सोचे-समझे अमेरिका को अंदर और बाहर दोनों जगह नुकसान पहुंचा रहे हैं। भारत और अमेरिका के रिश्ते भी पहले जैसे नहीं रहे। पिछले 25 सालों में, अमेरिका और भारत के संबंध लगातार बेहतर हो रहे थे। अमेरिका की सरकारें भारत को चीन के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण बढ़ावा दे रही थीं। ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी ऐसा ही था।
अमेरिका की पुरानी रणनीति बदली
ट्रंप के दोबारा आने से यह पुरानी रणनीति बदल गई है। वे खुले तौर पर उदार व्यवस्था को पसंद नहीं करते। वे पुराने जमाने की तरह अपनी जमीन बढ़ाना चाहते हैं। वे अमेरिका के सभी व्यापारिक साझेदारों पर रेसप्रिकोल टैरिफ लगाना चाहते हैं। उनका व्यवहार अपने सहयोगियों और विरोधियों दोनों के साथ टकराव वाला है। ऐसे में, भारत ने ट्रंप को खुश करने की कोशिश की है ताकि उसके पुराने फायदे बने रहें।
भारत की अमेरिकी कवायद
प्रधानमंत्री मोदी और उनके साथियों ने ट्रंप से मिलने के लिए वाशिंगटन की यात्रा की। उन्होंने ट्रंप को यह समझाने की कोशिश की कि भारत उनके दूसरे लक्ष्योंकी तरह नहीं है। भारत न तो मुफ्त में फायदा उठाने वाला सहयोगी है और न ही दुश्मन। इसलिए, भारत 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' के उनके अभियान में भागीदार बनेगा। मोदी ने ट्रंप की 'शांतिदूत' के रूप में खूब तारीफ की और "MAGA" का समर्थन भी किया। यह सब ट्रंप की नीतियों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए किया गया था।
ट्रंप की नीतियां बदलने के मायने
ट्रंप की नीतियों में बदलाव भारत के लिए मायने रखते हैं। पहले ऐसा नहीं होता था, लेकिन अब ट्रंप के व्यवहार से पता चलता है कि वे अमेरिका-चीन की प्रतिस्पर्धा में भारत को ज्यादा महत्व नहीं देते। उनकी सरकार के कुछ और विचार हो सकते हैं, जो समय के साथ सामने आएं। लेकिन फिलहाल, ट्रंप का ध्यान अमेरिका के व्यापार घाटे को ठीक करने पर है। इसलिए, भारत, जिसे 'टैरिफ किंग' कहा जाता है, उनके लिए एक आसान निशाना है।
अमेरिका को संतुष्ट करने की कोशिश
इसे समझते हुए, भारतीय नीति निर्माताओं ने कई कदम उठाए हैं। वे जल्द से जल्द एक अंतरिम व्यापार समझौता करना चाहते हैं ताकि ट्रंप भारत पर लगाए गए टैरिफ को हटा दें। उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया है कि भारत का परमाणु दायित्व कानून बदला जाएगा ताकि अमेरिका से परमाणु रिएक्टरों का निर्यात हो सके।
पुरानी व्यवस्था में अब अमेरिका की दिलचस्पी नहीं रही
अमेरिका अब अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। इससे भारत के लिए और भी मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। हालांकि भारतीय नेता कभी-कभी मौजूदा व्यवस्था को कम आंकते हैं क्योंकि इसमें भारत को उसकी सही जगह नहीं मिली है, लेकिन वे अनिश्चितताओं से बचने के लिए तेजी से कदम उठा रहे हैं।