मकर संक्रांति : विराट सनातन संस्कृति के दर्शन
मकर संक्रांति भारत के विभिन्न सांस्कृतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक आयामों का समागम है। यह पर्व न केवल कृषि और फसल की कटाई का प्रतीक है, बल्कि ऋतु परिवर्तन का भी संकेत देता है। इस दिन के उल्लास और समृद्धि का हर कोई अनुभव करता है और यह पर्व समाज में एकता, शांति और प्रकृति के साथ सामंजस्य का संदेश देता है।
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Sanjay Purohit
Created AT: 13 जनवरी 2025
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मकर संक्रांति पर्व न केवल भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है, बल्कि यह भारत की समूची साझी सनातन संस्कृति के दर्शन कराता है। यही वजह है कि इसे जहां पंजाब, हरियाणा में लोहड़ी, गुजरात और महाराष्ट्र में उत्तरायण, उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी, दक्षिण भारत में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में पोंगल, पश्चिम बंगाल में गंगा सागर मेला और असम तथा पूर्वाेत्तर में भोगाली बिहू के नाम से जाना जाता है। इन सभी में विराट सनातन संस्कृति के ही दर्शन होते हैं। ये सभी कृषि कर्मों, धार्मिक क्रियाकलाप और आस्था व विश्वासों पर टिके पर्व हैं।

वैज्ञानिक कारण

आमतौर पर मकर संक्रांति 13 या 14 जनवरी को मनायी जाती है। इस साल भी यह 14 जनवरी को मनायी जायेगी। भारत के साथ-साथ नेपाल में भी मकर संक्रांति का पर्व पूरी धार्मिक श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। दरअसल, पौष मास में जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, उस दिन को ही मकर संक्रांति कहते हैं। इसे कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में केवल संक्रांति ही कहते हैं, जबकि देश के अलग-अलग हिस्सों में संक्रांति के अलावा भी इसके कई स्थानीय नाम लिये जाते हैं। मकर संक्रांति को सूर्य उत्तरायण होता है यानी उत्तर दिशा की ओर हो जाता है।

धार्मिक क्रियाकलाप

इस दिन लोग पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं और जो संभव हो दान करते हैं। मकर संक्रांति को पूरे देश में धार्मिक श्रद्धा और उल्लास का माहौल होता है। जहां तक इस दिन की जाने वाली धार्मिक क्रियाकलापों की बात है तो इस दिन लोग भगवान सूर्य की पूजा करते हैं। गंगा, यमुना, गोदावरी, कावेरी, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। भगवान विष्णु और दूसरे देवताओं की पूजा करते हैं।

फसल और कृषि महत्व

जिन क्षेत्रों में धान और दूसरी खरीफ की फसलें पक चुकी होती हैं, उनकी कटाई शुरू होती है। विशेषकर पंजाब में इसे नाचने, गाने और उल्लास के पर्व के रूप में इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन से यहां फसलों की कटाई शुरू होती है। जबकि पश्चिम भारत विशेषकर गुजरात और कुछ हद तक राजस्थान में यह दिन पतंगबाजी की मस्ती, मेलों और लोकनृत्यों के आयोजन और उल्लास का पर्व होता है।

सामूहिकता की भावना

उत्तर भारत में इस दिन लोग खिचड़ी बनाकर प्रसाद के रूप में बांटते हैं। जरूरतमंद लोगों को इस दिन दान भी देते हैं। दान के रूप में बिना बनी यानी दाल और चावल मिली हुई खिचड़ी भी दी जाती है। दक्षिण भारत में इस दिन चार दिनों तक चलने वाला पोंगल पर्व शुरू होता है, यह भी मूलतः फसलों से जुड़ा पर्व है और ठीक इसी तरह बंगाल और पूर्वाेत्तर में भोगाली बिहू नाम से जो पर्व भोजन और नृत्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है, वह भी दरअसल फसलों की कटाई
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