


सरकार पहलगाम में आतंकवादी हमले के जवाब में चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद आक्रामक राजनयिक अभियान शुरू करने का फैसला किया है। इसके तहत वैश्विक मंच पर भारत के पक्ष को मजबूती से रखने और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को बेनकाब किया जाएगा। खास बात है कि इस काम के लिए मोदी सरकार ने नरसिम्हा राव की कूटनीति के रास्ते पर चलने का फैसला लिया है। अगले सप्ताह से विभिन्न देशों में कई बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजेगी। यह ठीक उसी तर्ज पर जब नरसिम्हा राव ने यूएन में कश्मीर मुद्दे पर भारत का पक्ष रखने के लिए विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजयपेयी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल भेजा था।
तब यूएन में गिर गया था पाकिस्तान का प्रस्ताव
1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार से जुड़े सत्र में एक प्रतिनिधि मंडल भेजने का फैसला किया था। इसका उद्देश्य कश्मीर समस्या पर भारत का पक्ष रखना और पाकिस्तान द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव को विफल करना था, जिसमें नई दिल्ली की निंदा की जाती। उस समय यह प्रयास बहुत सफल रहा था। वाजपेयी के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल के हस्तक्षेप के कारण पाकिस्तान का प्रस्ताव गिर गया था।
राव के कदम से परेशान थे खुर्शीद?
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने छह दशक से अधिक के राजनीतिक करियर में हमेशा व्यक्तिगत समीकरणों पर भरोसा किया। उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के साथ उनकी नजदीकी हमेशा उनके संबंधित राजनीतिक दलों में उत्सुकता भरी चर्चा का विषय रही। राव की तरफ से वाजपेयी को यूएन में भेजने के कदम को उनकी पार्टी के भीतर अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली। तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद जिनेवा में वाजपेयी के अधीन काम करने से विशेष रूप से परेशान थे।