


जब देश पर संकट आता है और युद्ध जैसे हालात बनते हैं, तो सैनिक सीमाओं पर दुश्मनों से लड़ते हैं, लेकिन देश की आंतरिक शक्ति तब बनती है जब आम नागरिक विवेकपूर्ण और संगठित ढंग से व्यवहार करते हैं. भारत के प्राचीन शास्त्र, जैसे मनुस्मृति, महाभारत, चाणक्य नीति, आदि में युद्धकाल में नागरिकों के कर्तव्यों का उल्लेख मिलता है. ऐसी स्थिति में एक आम नागरिक की क्या जिम्मेदारी होती है, जानते हैं.
युद्ध के समय नागरिकों के लिए आचार्य चाणक्य ने कुछ विशेष बातें बताई हैं, वे चाणक्य नीति में कहते हैं कि सबसे पहले लोगों को अफवाहों से बचना और सही जानकारी प्राप्त करना चाहिए. आज सोशलमीडिया का जमाना है, इसलिए चाणक्य की ये सलाह मौजूदा स्थिति में ध्यान रखने योग्य है. आचार्य चाणक्य कहते हैं, 'न प्रज्ञा नाप्युपायेन विनापायं निवारयेत्.' यानि बिना बुद्धिमत्ता और उपाय से संकट को नहीं टाला जा सकता.
सभी जानते हैं कि आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया एक बड़ा हथियार है, लेकिन गलत सूचना से बड़ा संकट कोई नहीं. इसलिए किसी भी खबर को साझा करने से पहले उसके स्रोत की पुष्टि करें. केवल आधिकारिक चैनल या राज्य सरकारों की वेबसाइटों पर भरोसा करें.
इसके साथ ही युद्ध की स्थिति में लोगों को प्रशासनिक निर्देशों का पालन गंभीरत से करना चाहिए. ऐसा क्यों करना चाहिए इसे श्लोक के माध्यम से समझें 'शासनस्य पालनं धर्मः.' ये श्लोक महाभारत के अनुशासन पर्व से लिया गया है जो ये बताता है कि शासन की आज्ञा का पालन करना ही धर्म है.
इसलिए यदि प्रशासन कर्फ्यू, ब्लैकआउट, या रिलोकेशन जैसे निर्देश देता है, तो उनका पालन अनिवार्य रूप से करें. इन आदेशों की अवहेलना ना केवल आपको बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकती है.
आपात या युद्ध की स्थिति में धैर्य से काम लेना चाहिए. कई बार युद्ध की स्थिति में बिजली, पानी, गैस जैसी सेवाओं में व्यवधान आ सकता है. इसलिए घर में आवश्यक दवाइयां, पीने का पानी, सूखा राशन, टॉर्च, रेडियो, बैटरी आदि पहले से तैयार रखें.
अपने आस-पास के बंकर या सुरक्षित स्थान की जानकारी रखें. ये क्यों आवश्यक है, इसे मनुस्मृति के इस श्लोक को समझना चाहिए, 'काले काले विनिर्गत्य लोकानां हितमाचरेत्.' इसका अर्थ है कि समय और परिस्थिति के अनुसार आचरण करना चाहिए.
विपरीत परिस्थितियों से बाहर तभी निकल सकते हैं जब मनोबल अच्छा है. कितनी ही खराब स्थिति हो यदि हमारा मनोबल ऊंचा है तो कोई भी चुनौती परेशान नहीं कर सकती है. 'हितोपदेश' के इस श्लोक को देखें, 'धैर्यं सर्वत्र साधनम्.' यानि धैर्य हर संकट का समाधान है. इसलिए कैसी भी परिस्थिति हो सयम को नहीं छोड़ना चाहिए.
चाणक्य नीति का नागरिकों के लिए विशेष निर्देश
चाणक्य के अनुसार, एक देश की रक्षा केवल उसकी सेना से नहीं होती, बल्कि उसके नागरिकों के साहस, विवेक और अनुशासन से होती है. वे कहते हैं: 'स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः.' इसका अर्थ है कि अपने धर्म का पालन करते हुए संकट झेलना भी श्रेयस्कर है.
इसमें नागरिकों के लिए यह संकेत है कि वे यदि अपने हिस्से की जिम्मेदारियां निभाते हैं, जैसे नियम पालन, सावधानी, और सहयोग, तो देश की सामूहिक शक्ति कई गुना बढ़ जाती है. स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि 'देशीय सुरक्षा केवल सीमा पर नहीं, नागरिकों के दिलों में भी रची जाती है. जब हर व्यक्ति सजग होता है, देश अजेय होता है.'
भारतीय संस्कृति और नीति शास्त्र सिखाती है कि युद्ध केवल हथियारों से नहीं, नागरिकों के चरित्र और सजगता से भी लड़ा जाता है. अगर हर नागरिक अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाए तो देश न केवल बाहरी आक्रमण से बल्कि आंतरिक विघटन से भी सुरक्षित रहेगा.
आज समय है देश के साथ खड़े होने का, संगठित और संतुलित सोच के साथ संकट को हराने का. जैसा कि श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.' यानि केवल अपने कर्तव्य का पालन करो, फल की चिंता मत करो.