


मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में स्थित झिरी गांव अपनी अनोखी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है, यहां के निवासी, बच्चे हों या बुजुर्ग, दैनिक जीवन में संस्कृत भाषा का उपयोग जरूर करते हैं। इस गांव की आबादी लगभग 1,500 है, और अधिकांश लोग आपस में संस्कृत में संवाद करते हैं। यहां तक कि घरों के नाम भी संस्कृत में लिखे गए हैं, जैसे कई घरों के बाहर 'संस्कृत गृहम' अंकित है।
संस्कृत भाषा को गांव की संस्कृति में शामिल करने की पहल 2002 में समाज सेविका विमला तिवारी द्वारा की गई थी। उनके प्रयासों से गांव के लोगों में संस्कृत के प्रति रुचि बढ़ी, और धीरे-धीरे यह गांव 'संस्कृत गांव' के रूप में जाना जाने लगा।
गांव में सुबह की शुरुआत 'गुड मॉर्निंग' की बजाय 'नमो-नम:' से होती है। यहां के दुकानदार, किसान, महिलाएं, बच्चे और नौकरीपेशा लोग सभी संस्कृत में ही बातचीत करते हैं। गांव के स्कूलों में भी संस्कृत प्राथमिक भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है, जिससे नई पीढ़ी भी इस भाषा में निपुण हो रही है।
झिरी गांव का यह प्रयास न केवल भारतीय संस्कृति और भाषा के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देता है, बल्कि समाज में भाषाई विविधता और सांप्रदायिक सौहार्द का भी प्रतीक है।