


2014 में नरेंद्र मोदी के PM बनने के बाद से, भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में काफी बदलाव आया है। कुछ खास लोगों को यह बदलाव पसंद नहीं आया है, दरअसल वे भारत को अंग्रेजों से मिली विरासत मानते हैं। उन्हें लगता है कि मोदी सरकार उनकी संस्कृति के खिलाफ है। पिछले 11 सालों में भारत ने पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति बदली है। अब भारत पाकिस्तान को भरोसेमंद नहीं मानता। वह आतंकवाद का जवाब देने के लिए तैयार है। यह बदलाव 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए हत्याकांड और 12 मई को मोदी के भाषण के बीच साफ दिखा। इन 20 दिनों में लोगों को समझ आया कि धोखेबाज पड़ोसी से निपटने के लिए उदारता काम नहीं आती। मोदी सरकार ने साफ कर दिया है कि देश की सुरक्षा सबसे जरूरी है।
देश के स्वभाव में यह बदलाव अचानक नहीं आया है, न ही यह सिर्फ चार दिन के 'ऑपरेशन सिंदूर' की वजह से हुआ है। इस ऑपरेशन में पाकिस्तान को 'न्यू इंडिया' की ताकत का अहसास हुआ। 1971 में ढाका में आत्मसमर्पण और देश के बंटवारे से पाकिस्तान को जो बेइज्जती हुई, वह आज भी उसके लोगों के दिमाग में है। लेकिन, इससे सबक लेने के बजाय, पाकिस्तान इसे बदला लेने का मौका मानता है। पाकिस्तान हमेशा से भारत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता रहा है।
परमाणु हमले की धमकी खोखली
आखिर में, 1998 में परमाणु शक्ति बनने के बाद, पाकिस्तान को लगता है कि अगर वह भारत से पारंपरिक युद्ध में हार जाता है, तो वह परमाणु हमले की धमकी देकर भारत को रोक सकता है, इससे दुनिया डर जाएगी और भारत पर दबाव डालेगी। पाकिस्तान को लगता है कि परमाणु हथियार होने से वह भारत को डरा सकता है। इस्लामाबाद ने पश्चिमी देशों को यह भी डराया है कि अगर पाकिस्तान कमजोर हुआ, तो उसके परमाणु हथियार कट्टरपंथी जिहादियों के हाथ में जा सकते हैं।