


दीपावली से एक दिन पूर्व आने वाली नरक चतुर्दशी केवल “नरक से मुक्ति” का प्रतीक पर्व नहीं है, बल्कि यह अध्यात्म में प्रकाश और अंधकार के गहन संतुलन का प्रतिनिधित्व करती है। यह तिथि महाविद्या माँ धूमावती के प्रकटोत्सव के रूप में भी जानी जाती है — जो संसार को यह सिखाती हैं कि प्रकाश हमेशा अंधकार की गोद से ही जन्म लेता है। माँ धूमावती का स्वरूप रहस्यमयी, त्यागमयी और पूर्ण वैराग्य का प्रतीक है। वह श्मशान की निस्तब्धता में भी मोक्ष और सत्य की वाणी बोलती हैं।
वेदों में मंत्र है — “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात् अंधकार से हमें ज्योति की ओर ले चलो। माँ धूमावती इसी वेदवाक्य की साकार व्याख्या हैं। ‘धूम’ का अर्थ है धुआँ और ‘अवती’ का अर्थ है धारण करने वाली — इस प्रकार धूमावती वह शक्ति हैं जो अग्नि के बाद शेष रहे अनुभव, बोध और विरक्ति को धारण करती हैं। ‘रुद्रयामल तंत्र’ और ‘तंत्रसार’ में उल्लेख है कि जब माता पार्वती ने शिव को अपने भीतर समा लिया, तब शिव ने उन्हें धूमरूप में प्रकट किया ताकि संसार समझ सके कि शक्ति और शिव एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।
नरक चतुर्दशी को काली चौदस भी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, जो अहंकार, मोह और विषयासक्ति का प्रतीक था। परंतु शाक्त परंपरा के अनुसार यह वध भीतर के अंधकार के विनाश का प्रतीक है। जब साधक अपने भीतर के “नरकासुर”— अर्थात् नकारात्मक प्रवृत्तियों — का नाश करता है, तभी वह आत्मिक रूप से मुक्त होता है। माँ धूमावती का स्वरूप इसी मुक्ति का मार्ग है। वह वैराग्य की देवी हैं, जो साधक को आसक्ति और मोह से परे ले जाती हैं।
तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित है कि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि में माँ धूमावती प्रकट हुईं। उनका क्षेत्र श्मशान माना जाता है, क्योंकि वहाँ अहंकार का अंतिम संस्कार होता है। जहाँ सब कुछ मिट जाता है, वहीं सत्य का उदय होता है। यही है धूमावती के प्रकटोत्सव का गूढ़ रहस्य — अंत के भीतर से आरंभ की उत्पत्ति।
धूमावती साधना का उद्देश्य भय या विध्वंस नहीं, बल्कि आंतरिक जागरण है। वह सिखाती हैं कि जीवन के हर दुःख, हानि और मोह का धुआँ भी अनुभव का एक रूप है, जिसे बोध में परिवर्तित किया जा सकता है।
दीपावली की श्रृंखला में नारक चतुर्दशी वह बिंदु है जहाँ साधक अंधकार से प्रकाश की यात्रा आरंभ करता है। माँ धूमावती का संदेश है — “अंधकार से मत डरो, क्योंकि उसी में ज्ञान का बीज छिपा है।” जो साधक इस दिन अपने भीतर के अंधकार को जला देता है, वही सच्चे अर्थों में दीपावली के प्रकाश का अधिकारी बनता है।