


बस्तर संभाग में होलिका दहन की कई अनूठी और प्राचीन परंपराएं देखने को मिलती हैं।
अबूझमाड़ के एरपुंड गांव में होलिका दहन के बाद ग्रामीण आग पर चलते हैं। इस गांव को अबूझमाड़ का प्रवेश द्वार माना जाता है। यहां के ग्रामीणों का मानना है कि इस प्रथा से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और क्षेत्र में खुशहाली आती है।
माड़पाल में 615 साल पुरानी परंपरा
माड़पाल में बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने होलिका दहन कर 615 साल पुरानी परंपरा को निभाया। कहा जाता है कि बस्तर के महाराजा पुरुषोत्तम देव ने पुरी से लौटते समय माड़पाल में होलिका दहन की शुरुआत की थी। तब से यह परंपरा चली आ रही है। इस बार भी कमलचंद भंजदेव रथ पर सवार होकर माड़पाल पहुंचे और होलिका दहन किया।
दंतेवाड़ा में ताड़ के पत्तों से होलिका दहन
दंतेवाड़ा में ताड़ के पत्तों से होलिका दहन की अनूठी परंपरा है। ताड़ के पत्तों को पहले दंतेश्वरी सरोवर में धोया जाता है, फिर पूजा करके होलिका दहन किया जाता है। यह परंपरा भी सदियों से चली आ रही है।