


माँ पीतांबरा को ब्रह्मांड की सबसे रहस्यमयी, शक्तिशाली और तांत्रिक महाशक्ति के रूप में जाना जाता है। वे दस महाविद्याओं में एक विशिष्ट स्थान रखती हैं। पीले वस्त्रों में लिपटी हुई, रौद्र और सौम्य दोनों रूपों की धारक यह देवी साधकों को अपार शक्ति, तेज और सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। उनका स्वरूप परा-विद्याओं, आत्म-ज्ञान और तेजस्विता का प्रतीक है।
उत्पत्ति और रहस्य
माँ पीतांबरा का प्राकट्य एक विशेष तांत्रिक शक्ति के रूप में हुआ। कहा जाता है कि जब पृथ्वी पर अत्याचार बढ़े और अधर्म चरम पर पहुँचा, तब माँ भगवती ने पीतांबरा रूप धारण कर रौद्र रूप में दुष्ट शक्तियों का संहार किया। वे स्वयं परब्रह्म स्वरूपिणी हैं – न वे केवल शक्ति हैं, न केवल ज्ञान, बल्कि दोनों का पूर्ण समन्वय।
साधना का केंद्र – दतिया
माँ पीतांबरा का प्रमुख सिद्धपीठ दतिया, मध्यप्रदेश में स्थित है, जिसे “तंत्र की राजधानी” भी कहा जाता है। यह स्थान सामान्य मंदिरों से कहीं अधिक रहस्यमय और शक्तिशाली माना जाता है। यहाँ हर साधक को उसकी साधना का निश्चित फल मिलता है, यदि वह निष्ठा, संयम और श्रद्धा से माँ की उपासना करे।
साधकों के लिए वरदान
माँ पीतांबरा की साधना अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है। गृहस्थ, राजनेता, न्यायाधीश, अधिकारी, विद्यार्थी और व्यापारी – सभी के लिए उनकी साधना फलदायक है। यह साधना व्यक्ति को अदृश्य रूप से सुरक्षा देती है, मानसिक शक्ति बढ़ाती है और शत्रु नाशक प्रभाव प्रदान करती है। इससे साधक को यश, ऐश्वर्य, तेज, पराक्रम और आत्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है।
तांत्रिक और आध्यात्मिक रहस्य
माँ पीतांबरा की साधना केवल सामान्य पूजा नहीं, अपितु तंत्र, योग और ब्रह्मज्ञान की त्रिवेणी है। यह साधना साधक को न केवल बाह्य रूप से शक्ति देती है, बल्कि आत्मा के स्तर पर चेतना की उच्च अवस्था तक ले जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो सच्चे हृदय से माँ का स्मरण करता है, उसे कोई तांत्रिक बाधा, जादू-टोना, ऊपरी हवा या दुष्ट प्रभाव छू भी नहीं सकता।
माँ पीतांबरा: ब्रह्मांडीय सत्ता की अधीष्ठात्री
माँ केवल साधना की देवी नहीं, वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की नियंत्रणकारी शक्ति हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी जिनकी आज्ञा के अधीन हैं, ऐसी हैं माँ पीतांबरा। वे साधक को ब्रह्मज्ञान और मोक्ष की ओर प्रेरित करती हैं और साथ ही संसार में विजय, सम्मान और वैभव भी प्रदान करती हैं।