


जिन देशों ने भी आर्थिक सफलता हासिल की है, जो देश आर्थिक महाशक्ति बने हैं, वे सरकारी नौकरियों की बदौलत नहीं बल्कि निजी क्षेत्र की नौकरियों के चलते आर्थिक महाशक्ति बने हैं। अमेरिका का उदाहरण देख लीजिए, यहां का सरकारी क्षेत्र बहुत छोटा है। अमेरिका को आर्थिक महाशक्ति बनाती हैं, यहां मौजूद निजी क्षेत्र की कंपनियां। वहां टेक्नोलॉजी में महारत भी निजी क्षेत्र के प्रयासों का नतीजा है। इसी क्रम में दुनिया की दूसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति चीन है। बेशक चीन का अधिकतर अर्थतंत्र सरकारी नियंत्रण में है, लेकिन यह देश अपने जिस मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की बदौलत आज अमेरिका का प्रतिद्वंद्वी है और दूसरी आर्थिक महाशक्ति है, वह यहां की निजी कंपनियों की बदौलत ही इस हैसियत में पहुंचा है। इसी तरह जर्मनी भी अगर यूरोप की आर्थिक महाशक्ति बन सका है, तो अपने निजी क्षेत्र के उद्योगों और इनकी निर्यात में भूमिका के कारण। जापान और दक्षिण कोरिया में विकास के मामले में बड़ी कारगर भूमिका निजी क्षेत्र की ही रही।
आर्थिक ताकतों से लें सबक
अगर भारत को भी दुनिया की आर्थिक ताकतों की विकास यात्रा से कोई सबक सीखना है, तो यही कि सरकारी नौकरियों पर हमें अपनी निर्भरता कम करनी होगी। हालांकि तमाम चाहतों के बावजूद भारत में सरकारी नौकरियां बढ़ने की बजाय लगातार घट रही हैं। सभी तरह की केंद्र और राज्य सरकारों की सारी नौकरियां कुल मिलाकर दो करोड़ भी नहीं हैं। करीब 1 करोड़ 77 लाख हैं और इनमें भी 30 से 35 लाख लोग हमेशा तय सीमा से कम होते हैं यानी सरकारी नौकरियों के 25 से 30 लाख तक पद आमतौर पर रिक्त रहते हैं।
भारत में करोड़ों युवाओं का सपना
ये आंकड़े हैरान कर सकते हैं कि भारत में हर समय करीब 3 से 4 करोड़ युवा सरकारी नौकरियों का सपना देख रहे होते हैं। एक एक हजार सरकारी नौकरियों के लिए 80-80 लाख लोग आवेदन करते हैं। सीमित सरकारी नौकरियों की लंबी चाह ने देश में लाखों युवाओं को ये नौकरियां न मिलने के कारण कुंठित-हताश कर दिया है। हर साल 500 से 1000 युवा नौकरियों की तलाश से लेकर भर्ती न हो पाने के चलते जीवन को लेकर अतिवादी कदम उठा लेते हैं।
बदलावकारी कदम उठाने की जरूरत
हम आर्थिक शक्ति या विकसित देश बन सकें, इसके लिए आखिर हमें क्या करना होगा? यह कहना शायद भारतीय मन को थोड़ा निराश करता है कि हममें से हर किसी को सरकारी नौकरी का सपना नहीं देखना चाहिए। लेकिन हमें यह बदलावकारी कदम उठाना ही होगा।
कुशलता और गतिशीलता
सरकारी सेवाएं बेहद धीमी और निजी क्षेत्र के मुकाबले बहुत अकुशल हैं। अगर देश में डिजिटल गवर्नेंस और नवाचार को नई ऊंचाइयों तक ले जाना है तो सरकारी तंत्र को कुशल और नतीजा डिलिवरी करने वाला बनाना ही होगा। सरकारी सेवाओं को गतिशील बनाना भी बहुत जरूरी है।
परस्पर प्रतिस्पर्धी हों दोनों सेक्टर्स
नॉर्डिक देशों जैसे स्वीडेन, नार्वे, डेनमार्क, फिनलैंड और आइसलैंड में सरकारी नौकरियों की बदौलत समाज खुशहाल और सम्मानपूर्ण दिखता है। लेकिन इन देशों ने सरकारी क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी और रिजल्ट देने वाला बनाया है। यहां सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों ही जगह समान वेतन मिलता है। समान सुविधाएं मिलती हैं। भ्रष्टाचार भी यहां सरकारी क्षेत्र में देखने को नहीं मिलता। वहीं इन देशों में वर्कलाइफ बैलेंस सभी तरह के कर्मचारियों के लिए एक जैसा है। सिंगापुर जैसा देश भी सरकारी कर्मचारियों की बदौलत बेहद स्मार्ट और कारोबार में दक्ष देश है।
अगर भारत को भी बड़ा सपना हासिल करना है, तो देश के लोगों में विशेषकर युवाओं में यह बात बैठानी होगी कि सरकारी नौकरी भले कितनी ही आपको सुरक्षित जीवन देती हो, पर चूंकि यह सबके लिए उपलब्ध नहीं है, इसलिए यह सबको नहीं मिलती। देश के हर युवा को सरकारी नौकरी करनी भले चाहिए, लेकिन उसके लिए क्रेजी नहीं होना चाहिए।