


आज 9 सितंबर 2025 को पितृ पक्ष का दूसरा श्राद्ध किया जाएगा। पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष महत्व माना गया है। पितरों की शांति और मुक्ति के लिए आज द्वितीया तिथि का श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु की तिथि के अनुसार ही पितरों का श्राद्ध करने का विधान है। पितृ पक्ष की द्वितीया तिथि पर उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर हुई हो। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान 15 दिनों के लिए धरती पर आते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए कुतुप मुहूर्त, रौहिण काल और अपराह्न काल सबसे शुभ माना जाता है। चलिए आपको बताते हैं कि द्वितीया तिथि के श्राद्ध का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।
दूसरा श्राद्ध मुहूर्त 2025
- द्वितीया तिथि शुरू – 8 सितंबर को रात 9:11 बजे से।
- द्वितीया तिथि समाप्त – 9 सितंबर को शाम 06:28 पर।
- अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11:53 से दोपहर 12:43 बजे तक।
- कुतुप मुहूर्त – सुबह 11:53 से दोपहर 12:43 बजे तक।
- रोहिणी मुहूर्त – दोपहर 12:43 से दोपहर 01:33 बजे तक।
- अपराह्न काल – दोपहर 1:33 से दोपहर 04:03 बजे तक।
द्वितीया श्राद्ध में सत्तू का महत्व
पितृ पक्ष की द्वितीया तिथि श्राद्ध की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। द्वितीया श्राद्ध को दूज श्राद्ध भी कहा जाता है। द्वितीया तिथि के श्राद्ध में सत्तू का विशेष महत्व होता है। द्वितीया तिथि के श्राद्ध के दौरान तिल और सत्तू का तर्पण जरूर करें। सत्तू में तिल मिलाएं और अपसव्य से दक्षिण-पश्चिम दिशा में विधान पूरा करें। उत्तर-पूर्व क्रम से सत्तू को छिड़के और पितरों की तृप्ति के लिए प्रार्थना करते रहें।
द्वितीया तिथि का श्राद्ध कैसे करें?
- द्वितीया श्राद्ध के दिन स्नान आदि के बाद साफ धोती और जनेऊ पहनें।
- दोपहर के समय शुभ मुहूर्त पर उंगली में दरभा घास मोड़कर पहन लें।
- फिर पहले से बने पिंडों को एक एक कर पितरों को अर्पित करें।
- अब बर्तन से धीरे-धीरे पितरों को दक्षिण दिशा में जल अर्पित करते जाएं।
- इस दिन भगवान विष्णु और यमदेव की पूजा करना शुभ होता है।
- इसके बाद तर्पण करें और पितरों के लिए बनाए भोजन को रखकर अंगूठे से जल चढ़ाएं।
- अब उस भोजन को गाय, कौवे और कुत्ते खिलाएं. इसके बाद चींटियों के लिए भी भोजन छोड़ दें।
- अंत में ब्राह्मण भोज करवाएं और तर्पण कर यथाशक्ति दान दक्षिणा करें।