


हर वर्ष 10 अक्टूबर को “विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस” (World Mental Health Day) मनाया जाता है — यह दिन हमें याद दिलाता है कि मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही आवश्यक है। इस वर्ष 2025 की थीम है — “Mental health is a universal human right” — यानी मानसिक स्वास्थ्य हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।
मानसिक स्वास्थ्य: समाज का मौन संकट
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में तनाव, अवसाद, चिंता (anxiety), अकेलापन और असुरक्षा जैसी स्थितियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। तकनीकी विकास ने जीवन को आसान जरूर बनाया है, लेकिन मन को अशांत भी किया है।
WHO की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में हर 8वां व्यक्ति किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहा है। भारत जैसे देश में यह संख्या करोड़ों में है — लेकिन दुख की बात यह है कि अब भी मानसिक बीमारी को कमजोरी या कलंक की तरह देखा जाता है।
“मन” की चुप्पी को सुनने की ज़रूरत
मानव जीवन का असली संतुलन ‘मन’ पर निर्भर है। मन यदि शांत, स्थिर और सकारात्मक हो तो व्यक्ति हर परिस्थिति को पार कर सकता है।
लेकिन जब मन टूटने लगे — तो उसे ‘मजबूत बनो’ कहकर नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।
मानसिक स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ बीमारी का न होना नहीं है, बल्कि यह उस स्थिति का नाम है जब व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और व्यवहार पर स्वस्थ नियंत्रण रख सके, और समाज में सार्थक भूमिका निभा सके।
समाधान की दिशा में
1. संवाद की शुरुआत करें – अपने परिवार और मित्रों के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करें।
2. संतुलित जीवनशैली अपनाएँ – योग, ध्यान और नियमित नींद मन को शांति देते हैं।
3. डिजिटल डिटॉक्स करें – सोशल मीडिया से सीमित जुड़ाव मानसिक थकान को कम करता है।
4. जरूरत पड़ने पर सहायता लें – मानसिक चिकित्सक या काउंसलर से मिलना कमजोरी नहीं, जागरूकता का संकेत है।
5. सकारात्मक वातावरण बनाएं – कार्यस्थल और परिवार दोनों में सहानुभूति, संवेदनशीलता और समर्थन का माहौल आवश्यक है।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक चेतना है — यह हमें याद दिलाता है कि मानसिक स्वास्थ्य का अधिकार सबका है।
जब हम मन की देखभाल को उतनी ही गंभीरता से लेने लगेंगे जितनी शरीर की देखभाल को लेते हैं, तब ही एक सच्चे रूप से स्वस्थ समाज का निर्माण संभव होगा।