


क्या NOTA का विकल्प मतदाताओं को तब भी मिलना चाहिए, जब चुनाव मैदान में सिर्फ एक उम्मीदवार हो? सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस अहम मुद्दे पर विचार करने की सहमति दी। कोर्ट यह भी देखेगा कि क्या NOTA को मिले वोट उम्मीदवार से ज्यादा होने पर चुनाव रद्द कर देना चाहिए।
NOTA को एक असफल विचार बताया
केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने NOTA को एक असफल विचार बताया है। उनका कहना है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लागू होने के बावजूद, मतदाताओं ने इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है। हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भुयान और जस्टिस एन के सिंह की बेंच ने कहा, 'यह एक दिलचस्प सवाल है। यह सच है कि भारत में चुनाव बहुत ही कड़े होते हैं। लेकिन कल्पना कीजिए कि मतदाता उस अकेले उम्मीदवार को नहीं चाहते हैं, जो निर्विरोध चुना जाने वाला है। वे उसे विधानसभा या लोकसभा में अपना प्रतिनिधि नहीं बनाना चाहते।'
सिर्फ एक उम्मीदवार के मैदान में होने पर NOTA का विकल्प मिले?
जस्टिस कांत ने आगे कहा, 'अगर मतदाताओं में अकेले उम्मीदवार के खिलाफ गुस्सा है, तो वे बड़ी संख्या में NOTA चुनेंगे। अगर NOTA को मिलने वाले वोट अकेले उम्मीदवार से ज़्यादा हैं, तो क्या किया जाना चाहिए? यह भले ही सैद्धांतिक हो, लेकिन यह एक बहुत ही दिलचस्प सवाल है, जिस पर न्यायिक विचार-विमर्श की आवश्यकता हो सकती है।'