


श्रावण मास हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और पुण्यकारी महीना माना जाता है, जिसमें भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है। इस मास में पड़ने वाली एकादशी तिथि का धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत विशेष महत्व है, क्योंकि यह तिथि न केवल विष्णु भक्ति का प्रमुख पर्व है, बल्कि शिवभक्ति के माहात्म्य से भी समन्वित होकर अत्यधिक फलदायी बन जाती है।
श्रावण मास की एकादशियाँ—विशेष रूप से कामिका एकादशी, पवित्रा एकादशी, और श्रावण पुत्रदा एकादशी—के व्रत से मनुष्य को पापों से मुक्ति, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, श्रीहरि विष्णु का पूजन करते हैं तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करते हैं। साथ ही शिवलिंग पर गंगाजल, बेलपत्र और दूध अर्पित करके शिव की कृपा भी प्राप्त करते हैं।
मान्यता है कि श्रावण माह की एकादशी का व्रत करने से सौ यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है। इस दिन किया गया जप, ध्यान और दान कई गुना अधिक फलदायक होता है। यह व्रत मन, वचन और कर्म की शुद्धि का मार्ग है, जो व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से ऊपर उठाकर मोक्ष की ओर ले जाता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से यह तिथि शरीर और मन को संयमित करने का अवसर भी प्रदान करती है। श्रावण की पावन वर्षा, हरियाली और वातावरण में व्याप्त सात्त्विकता, एकादशी के व्रत और उपासना के प्रभाव को और भी सघन बना देती है।
संक्षेप में, श्रावण मास की एकादशी केवल एक उपवास नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, आराधना और प्रभु भक्ति का उत्कृष्ट अवसर है, जो जीवन में आध्यात्मिक स्थिरता, मानसिक संतुलन और ईश्वरीय कृपा को आकर्षित करता है। यह तिथि भगवान विष्णु और शिव—दोनों की उपासना का संगम है, जिसमें सच्चे श्रद्धा-भाव से किया गया पूजन मानव जीवन को धन्य बना सकता है।