


परशुराम जयंती भगवान परशुराम के जन्म का प्रतीक है, जिन्हें भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजा जाता है। यह हर साल वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ती है। इस साल परशुराम जयंती 29 अप्रैल को मनाई जाएगी।
परशुराम जी का जन्म और उनके पिता
परशुराम जी का जन्म जमदग्नि ऋषि और रेणुका देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। उनके पिता जमदग्नि एक ऋषि थे और भृगु महर्षि के वंशज थे। परशुराम जी अपने पिता के प्रति अपनी गहन भक्ति और धर्म के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे।
सहस्त्रबाहु और परशुराम जी का क्रोध
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सहस्त्रबाहु जिन्हें अर्जुन के नाम से भी जाना जाता है, वह हैहय वंश के राजा कृतवीर्य का पुत्र था। उसने भगवान दत्तात्रेय की घोर तपस्या करके एक हजार भुजाओं का वरदान प्राप्त किया था। सहस्त्रबाहु एक शक्तिशाली और पराक्रमी राजा था, लेकिन बीतते समय के साथ उसे अपने बल का घमंड हो गया था।
सहस्त्रबाहु का अपराध
एक बार सहस्त्रबाहु अपनी पूरी सेना के साथ ऋषि जमदग्नि के आश्रम में गया। ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु गाय की सहायता से सहस्त्रबाहु और उसकी विशाल सेना का स्वागत किया। कामधेनु की अद्भुत शक्ति को देखकर सहस्त्रबाहु के मन में लालच आ गया। उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को छीनने का प्रयास किया, लेकिन जब ऋषि ने इंकार कर दिया तो उसने उनका अपमान किया और कामधेनु को बलपूर्वक अपने साथ ले गया।
परशुराम जी की प्रतिज्ञा
जब परशुराम जी लौटे तो उन्हें इस घटना की जानकारी हुई। अपने पिता के अपमान से वे बहुत क्रोधित हुए और तभी उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वह इस दुष्ट राजा और उसके वंश का नाश कर देंगे। परशुराम जी ने सहस्त्रबाहु का पीछा किया और उसका वध कर दिया। हालांकि, सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने प्रतिशोध लेने के लिए ऋषि जमदग्नि को मार दिया। पिता की हत्या से परशुराम का क्रोध और बढ़ गया, जिस वजह से उन्होंने क्षत्रिय वंश के अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त कराने का संकल्प लिया और 21 बार धरती को क्षत्रियों से विहीन कर दिया। परशुराम जी की कहानी हमें सिखाती है कि धर्म और न्याय की रक्षा के लिए हमें अपने क्रोध और घमंड को नियंत्रित करना चाहिए। परशुराम जी ने अपने पिता के अपमान और हत्या के प्रतिशोध में क्षत्रिय वंश का नाश किया, लेकिन उन्होंने अपने धर्म और न्याय के मार्ग पर चलते हुए यह कार्य किया।