बदलती भारतीय जनसंख्या संरचना: आने वाली चुनौतियाँ और संभावनाएँ
भारत की जनसंख्या तेजी से मात्रात्मक विकास के साथ-साथ गुणात्मक परिवर्तन से भी गुजर रही है। जन्म दर, मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा, प्रवासन और शहरीकरण जैसे कारकों ने देश की जनसांख्यिकी को एक नई दिशा दी है। ये बदलाव न केवल सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में प्रभाव डालते हैं, बल्कि नीतिगत योजनाओं को भी चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।
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Sanjay Purohit
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भारत की जनसंख्या तेजी से मात्रात्मक विकास के साथ-साथ गुणात्मक परिवर्तन से भी गुजर रही है। जन्म दर, मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा, प्रवासन और शहरीकरण जैसे कारकों ने देश की जनसांख्यिकी को एक नई दिशा दी है। ये बदलाव न केवल सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में प्रभाव डालते हैं, बल्कि नीतिगत योजनाओं को भी चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।

युवा जनसंख्या: अवसर या दबाव?

भारत की सबसे बड़ी पूंजी इसकी युवा जनसंख्या (15–35 आयु वर्ग) है। यह जनसांख्यिकीय लाभांश एक ओर जहां रोजगार, नवाचार और आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं पैदा करता है, वहीं दूसरी ओर यदि पर्याप्त शिक्षा, कौशल और अवसर न दिए गए तो यही युवा वर्ग बेरोजगारी, हताशा और असंतोष का कारण बन सकता है।

वृद्धजन की बढ़ती संख्या: स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा की चुनौती

भारत में 60 वर्ष से ऊपर की आबादी तेजी से बढ़ रही है। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण औसत आयु बढ़ रही है, परंतु इस वर्ग के लिए पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक समर्थन की आवश्यकता अब एक बड़ी जिम्मेदारी बनती जा रही है। इससे सरकार पर आर्थिक और संस्थागत दबाव बढ़ेगा।

ग्रामीण से शहरी प्रवासन: अव्यवस्थित शहरीकरण की ओर

रोजगार, शिक्षा और जीवनशैली के कारण बड़ी संख्या में लोग गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इससे शहरों में झुग्गी-बस्तियों की संख्या बढ़ रही है, बुनियादी सेवाओं पर दबाव पड़ रहा है और सामाजिक विषमता भी तेज हो रही है।

लिंग अनुपात में असंतुलन: सामाजिक तनाव का संकेत

कुछ राज्यों में लिंग अनुपात में गिरावट चिंता का विषय है। भ्रूण हत्या, बालिका उपेक्षा और सामाजिक सोच ने इस असंतुलन को जन्म दिया है। यह असंतुलन आगे चलकर विवाह प्रणाली, सामाजिक ताने-बाने और अपराध दर पर प्रभाव डाल सकता है।

शिक्षा और कौशल विकास की असमानता

देश के कई क्षेत्रों में अब भी शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच असमान है। नई जनसंख्या संरचना को यदि सक्षम मानव संसाधन में बदलना है तो स्कूली शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण और डिजिटल साक्षरता पर भी व्यापक कार्य करना होगा।

नीति और योजना में समावेशिता की आवश्यकता

बदलती जनसंख्या संरचना के मद्देनज़र नीतियों को अधिक समावेशी और भविष्य उन्मुख बनाना होगा। इसमें बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं, युवाओं के लिए स्टार्टअप और रोजगार योजनाएं, महिलाओं के लिए स्वास्थ्य और सशक्तिकरण के उपाय शामिल

चुनौती में छिपी संभावना

बदलती जनसांख्यिकी भारत के लिए एक दोधारी तलवार है। यदि सही योजना, शिक्षा और स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत किया जाए तो यह परिवर्तन विकास की गाड़ी को तीव्र गति दे सकता है। अन्यथा यह सामाजिक और आर्थिक असंतुलन का कारण बन सकता है

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