


नवरात्रि का पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मबल और देवी शक्ति के जागरण का अवसर है। जब पूरे देश में दुर्गा पूजा की धूम रहती है, तब श्रद्धालु हिंगलाज शक्तिपीठ का स्मरण भी करते हैं। पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित यह शक्तिपीठ 51 महाशक्तिपीठों में से एक है, जहाँ माता सती का ब्रह्मरंध्र (सिर का भाग) गिरा था।
प्रकृति में विराजती हिंगलाज भवानी
इस पीठ की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ देवी की मूर्ति नहीं, बल्कि प्राकृतिक पिंड ही उनकी उपस्थिति का प्रतीक है। "हिंगलाज भवानी" या "कटक चंडी" के नाम से प्रसिद्ध यह स्थान साधकों को निराकार और साकार—दोनों ही रूपों में शक्ति का अनुभव कराता है। नवरात्रि में यहाँ का ध्यान यह सिखाता है कि शक्ति किसी एक स्वरूप तक सीमित नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है।
कठिन यात्रा, अनमोल अनुभव
हिंगलाज माता का मार्ग कठिन और रहस्यमय माना जाता है, लेकिन इसी कठिनाई में साधक को साधना का असली फल मिलता है। मान्यता है कि यहाँ पहुँचने वाला भक्त जीवन की चुनौतियों को पार करने का साहस और आत्मविश्वास प्राप्त करता है। नवरात्रि के दौरान यह अनुभव और भी गहन हो जाता है।
आधुनिक जीवन के लिए प्रेरणा
आज के तनावपूर्ण और भागदौड़ भरे समय में हिंगलाज शक्तिपीठ का संदेश बेहद प्रासंगिक है—शक्ति बाहर नहीं, हमारे भीतर ही छिपी हुई है। नवरात्रि में हिंगलाज माता की आराधना उसी ऊर्जा को जागृत करती है, जो हर अंधकार को प्रकाश और हर भय को विश्वास में बदल देती है।