


म्यांमार में चल रहे गृहयुद्ध ने सबसे ज्यादा प्रभाव रखाइन राज्य पर डाला है। रखाइन में बीते महीनों में अराकान आर्मी ने लगातार जुंटा शासन के खिलाफ बढ़त बनाई है और राज्य के ज्यादातर हिस्से पर कब्जा कर लिया है। अराकान आर्मी का रुख स्थानीय रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ रहा है। इसकी वजह से रोहिंग्याओं को बड़ी तादाद में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसका नतीजा ये हो रहा है कि कई विद्रोही समूह रखाइन में एए के खिलाफ लड़ाई में जुंटा के साथ शामिल हो गए हैं। इससे बांग्लादेश में शरण लिए रोहिंग्याओं का संकट बढ़ सकता है। बांग्लादेश में ही ये गुट लड़ाकों की भर्ती कर रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (ICG) की एक नई रिपोर्ट कहती है कि रोहिंग्या विद्रोही समूहों ने रखाइन के लिए लड़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बांग्लादेश में शरणार्थी शिविरों को नियंत्रित करने के लिए वर्षों से चल रहे युद्ध को रोक दिया है। ये गुट जुंटा सैनिकों या संबद्ध मिलिशिया के साथ एए के खिलाफ लड़ रहे हैं।
रखाइन में जुंटा को सबसे ज्यादा नुकसान
म्यांमार में रखाइन राज्य में पिछले 18 महीनों में सैन्य सरकार ने सबसे अधिक जमीन खोई है। अराकान आर्मी ने उत्तरी रखाइन के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण कर लिया है और पूरे राज्य पर कब्जा करने की तैयारी में है। जुंटा हवाई हमलों से प्रतिरोध-नियंत्रित कस्बों और शहरों पर बमबारी कर रहा है और एए के खिलाफ एक पूर्व कट्टर दुश्मन को जुटाने की कोशिश कर रहा है। इस कोशिश में रोहिंग्या गुटों का साथ उसे मिलता दिख रहा है।
रोहिंग्या मुख्य रूप से मुस्लिम जातीय समूह है, जिसका म्यांमार में उत्पीड़न का लंबा इतिहास है। हालिया दिनों में अराकान आर्मी पर रोहिंग्याओं का नरसंहार करने और उन्हें बाहर निकालने की कोशिश के आरोप लगे हैं। मेलबर्न स्थित म्यांमार और बांग्लादेश के आईसीजी सलाहकार थॉमस कीन ने बताया है कि पिछले छह महीनों में रोहिंग्या सशस्त्र समूहों ने दक्षिणी बांग्लादेश के शिविरों में अपनी आपसी लड़ाई को रोक दिया है और शरणार्थियों की भर्ती तेज कर दी है। ये गुट मान रहे हैं कि घर लौटने का एकमात्र तरीका अराकान आर्मी से लड़ना है।