


गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा और आत्मनिर्भरता को लेकर एक साहसिक बयान दिया है। उन्होंने कहा कि "अब वह दिन दूर नहीं जब भारत में अंग्रेज़ी बोलने वालों को खुद पर शर्म आने लगेगी।" यह टिप्पणी उन्होंने पूर्व IAS अधिकारी आशुतोष अग्निहोत्री की आत्मकथा "मैं बूंद स्वयं, खुद सागर हूं" के विमोचन समारोह के दौरान की। अमित शाह ने कहा कि भारतीय भाषाएं न केवल हमारी पहचान की बुनियाद हैं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और चेतना की भी वाहक हैं। उनका मानना है कि अब समय आ गया है जब हमें गुलामी की मानसिकता से बाहर निकलकर अपनी भाषाई जड़ों पर गर्व करना चाहिए।
यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए 'पंच प्रण' के संदर्भ में भी देखा जा रहा है, जिसमें 'गुलामी की मानसिकता से मुक्ति और अपनी विरासत पर गर्व' का संकल्प शामिल है। शाह ने यह भी कहा कि 2047 तक भारत को विश्वशक्ति बनाने की राह में देश की भाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होगी और तब भारत की युवा पीढ़ी अंग्रेज़ी की ओर नहीं, अपनी भाषाओं की ओर सम्मान से देखेगी।
अमित शाह के बयान का गहरा संदेश
भाषायी आत्मनिर्भरता का आह्वान
गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि भारतीय भाषाएं केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता की आत्मा हैं। अंग्रेज़ी वर्चस्व से मुक्त होकर हमें अपनी भाषाओं में आत्मगौरव खोजना चाहिए।
गुलामी की मानसिकता से मुक्ति
यह विचार प्रधानमंत्री मोदी के 'पंच प्रण' में शामिल उस बिंदु से जुड़ा है, जिसमें औपनिवेशिक सोच से मुक्ति का आह्वान किया गया है। अंग्रेज़ी को श्रेष्ठ मानने की मानसिकता को वे इसी गुलामी का चिन्ह मानते हैं।
वैश्विक भारत और मातृभाषा
अमित शाह का मानना है कि 2047 तक जब भारत विश्वशक्ति बनेगा, तब अंग्रेज़ी नहीं, भारतीय भाषाएं गर्व का विषय होंगी। यानी, विकास की भाषा अब सिर्फ अंग्रेज़ी नहीं होगी — बल्कि हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी, आदि भाषाएं भी होंगी।
युवाओं का भाषायी भविष्य
अमित शाह की यह बात युवाओं को सीधा संदेश देती है कि भविष्य में सफलता मातृभाषा के साथ भी संभव है, और अंग्रेज़ी कोई श्रेष्ठता का प्रतीक नहीं रह जाएगी।