हिंदू पंचांग में पौष मास का विशेष धार्मिक महत्व माना गया है. इस माह को ‘मिनी पितृ पक्ष’ या छोटा पितृ पक्ष भी कहा जाता है, क्योंकि इस दौरान पितरों के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करने की परंपरा है. धार्मिक मान्यता है कि पौष मास में श्रद्धा भाव से किए गए पितृ कर्म से पूर्वजों को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है, वहीं उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है. पौष कृष्ण पक्ष में विशेष रूप से पितृ तर्पण और पिंडदान का महत्व बताया गया है. यही वजह है कि इस समय देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु गया जी पहुंचकर अपने पितरों के मोक्ष की कामना करते हैं. पौराणिक मान्यता है कि यहां विधि-विधान से किया गया पिंडदान पितरों को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त करता है.
सूर्य का गोचर और पौष मास
पौष मास में सूर्य का महत्वपूर्ण गोचर होता है. इस दौरान सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है, जिसे धनु संक्रांति कहा जाता है. इसके बाद सूर्य का सबसे बड़ा गोचर मकर संक्रांति के रूप में आता है. सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही खर मास आरंभ हो जाता है, जिसमें विवाह और अन्य मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं. यही कारण है कि इस काल में लोग अधिकतर पितृ पूजा, तप, दान और भगवान विष्णु व सूर्य की उपासना करते हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आश्विन, कार्तिक, पौष और चैत्र इन चार महीनों में पितरों के लिए पिंडदान अत्यंत फलदायी माना गया है. इनमें से कार्तिक, पौष और चैत्र को मिनी पितृ पक्ष कहा जाता है.
पौष अमावस्या 2025 कब है
पंचांग के अनुसार, इस साल पौष माह की अमावस्या तिथि 19 दिसंबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी. अमावस्या तिथि की शुरुआत 19 दिसंबर को सुबह 04 बजकर 59 मिनट से होगी और इसका समापन 20 दिसंबर को सुबह 07 बजकर 12 मिनट पर होगा. इस दिन पितृ तर्पण और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व है. पौष माह में भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा को अत्यंत शुभ माना गया है. पितरों के प्रति श्रद्धा और धार्मिक आस्था से वातावरण पूरी तरह आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है.