


पश्चिम बंगाल समेत भारत में कई जगहों पर दुर्गा पूजा का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दौरान भव्य पंडालों में मां दुर्गा की विशाल मूर्तियों को स्थापित किया जाता है और नवमी या दशमी के दिन इसे विसर्जित कर दिया जाता है. इसमें मां दुर्गा की जो मूर्ति स्थापित की जाती है, उसमें खास किस्म की मिट्टी शामिल की जाती है.
मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए कहीं पांच तो कहीं दस तरह कि मिट्टी ली जाती है. ऐसा कहते हैं कि देवों और प्रकृति के अंश से मां दुर्गा का तेज प्रकट होता है, इसलिए इसमें कई जगहों की मिट्टी को शामिल किया जाना जरूरी है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस प्रतिमा को बनाने के लिए वेश्यालय के आंगन की मिट्टी का प्रयोग किए जाने की भी परंपरा है.
क्यों ली जाती है वेश्यालय से मिट्टी?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक वेश्या मां दुर्गा की बड़ी भक्त थी. लेकिन वो समाज में अपने तिरस्कार से बहुत दुखी थीं. तब मां दुर्गा ने उसकी सच्ची श्रद्धा को देखते हुए ये वरदान दिया था कि जब तक उसकी प्रतिमा में वेश्यालय की को शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक देवी का उस मूर्ति में वास नहीं होगा.
इसके अलावा इस मिट्टी के इस्तेमाल के पीछे कई और धारणाएं भी हैं जिनमें एक धारणा ये है कि जब कोई पुरुष किसी वेश्यालय में जाता है तो वो अपनी सारी पवित्रता और गुणों को वेश्यालय की चौखट के बाहर छोड़ देता है और वहां से लौटते हुए पाप का बोझ लेकर जाता है. इसलिए चौखट के बाहर की मिट्टी पवित्र हो जाती है. ऐसा माना जाता है कि वेश्याओं के घर की मिट्टी कई पुरुषों के पुण्यों से भरी होती है.
वहीं, कई लोग इस परंपरा को समाज में सुधार और बदलाव लाने के तौर पर भी देखते हैं. इन लोगों का मानना है कि मूर्तियों के निर्माण में वेश्यालय की मिट्टी के इस्तेमाल का मकसद उस पितृसत्तामक समाज के मानस को कचोटना है जिसकी वजह से महिलाओं को नर्क में धकेलने वाला ये कारोबार चलता है.