


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा निशानियों की 127 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद देश में वापसी की सराहना करते हुए इसे देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए एक गौरवपूर्ण और खुशी का क्षण बताया। ‘विकास भी, विरासत भी’ की भावना को प्रतिबिंबित करते हुए एक वक्तव्य में पीएम मोदी ने भगवान बुद्ध के उपदेशों के प्रति भारत की अपार श्रद्धा तथा अपनी आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित करने के प्रति राष्ट्र की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाया।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में पीएम मोदी ने लिखा, “हमारी सांस्कृतिक विरासत के लिए एक खुशी का दिन!
भगवान बुद्ध की पवित्र पिपरहवा निशानियां 127 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद स्वदेश वापस आ गई हैं, यह जानकर हर भारतीय को गर्व होगा। ये पवित्र निशानियां भगवान बुद्ध और उनकी महान शिक्षाओं के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध को दर्शाती हैं। यह हमारी गौरवशाली संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के संरक्षण और सुरक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है। #विकास भी विरासत भी”
पीएम मोदी ने आगे कहा, “यह स्मरणीय है कि पिपरहवा निशानियां 1898 में खोजी गई थीं, किंतु औपनिवेशिक काल के दौरान इन्हें भारत से बाहर ले जाया गया था। जब इस वर्ष की शुरुआत में ये एक अंतरराष्ट्रीय नीलामी में दिखाई दीं, तो हमने यह सुनिश्चित करने के लिए काम किया कि ये स्वदेश वापस आ जाएं। मैं इस प्रयास में शामिल सभी लोगों की सराहना करता हूं।”
ज्ञात हो, पिपरहवा अवशेष मूल रूप से 1898 में उत्तर प्रदेश के वर्तमान सिद्धार्थनगर जिले में स्थित पिपरहवा स्तूप से खुदाई करके प्राप्त किए गए थे। यह स्थल व्यापक रूप से भगवान बुद्ध की जन्मभूमि, प्राचीन कपिलवस्तु का हिस्सा माना जाता है।
उल्लेखनीय है कि ये अवशेष, जिसमें अस्थि के टुकड़े, सोपस्टोन और क्रिस्टल के ताबूत, एक बलुआ पत्थर का संदूक, सोने के आभूषण और रत्न जैसे चढ़ावे शामिल हैं, 1898 में विलियम क्लैक्सटन पेप्पे द्वारा खुदाई की गई थी। ब्राह्मी लिपि में एक शिलालेख इनकी पुष्टि करता है कि ये बुद्ध के अवशेष हैं, जिन्हें शाक्य वंश द्वारा जमा किया गया था।
सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने सोथबी हांगकांग द्वारा पवित्र पिपरहवा अवशेषों की नीलामी को रोकने को तुरंत और व्यापक कदम उठाए थे। तत्पश्चात, भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा निशानियों की 127 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद देश में वापसी हुई है। गौरतलब हो, संस्कृति मंत्रालय भारत की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने और पिपरहवा अवशेषों की वापसी सुनिश्चित करने के अपने प्रयासों में लगातार प्रयासरत हैं।