श्रावण मास में सोमवार का महत्व
श्रावण मास हिन्दू पंचांग का अत्यंत पुण्यदायक एवं शक्तिशाली मास है। यह वर्षा ऋतु के मध्य आता है जब प्रकृति स्वयं शुद्धिकरण की प्रक्रिया में लीन होती है। इस माह में आने वाले सोमवारों का विशेष महत्व है, जो भगवान शिव को समर्पित हैं।
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Sanjay Purohit
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श्रावण मास हिन्दू पंचांग का अत्यंत पुण्यदायक एवं शक्तिशाली मास है। यह वर्षा ऋतु के मध्य आता है जब प्रकृति स्वयं शुद्धिकरण की प्रक्रिया में लीन होती है। इस माह में आने वाले सोमवारों का विशेष महत्व है, जो भगवान शिव को समर्पित हैं। आध्यात्मिक ग्रंथों, वेदों और पुराणों में श्रावण सोमवार का वर्णन केवल उपवास या व्रत के रूप में नहीं बल्कि चेतना के गहन जागरण और तप की चरम अवस्था के रूप में किया गया है।

प्राकृतिक दृष्टिकोण

श्रावण मास के आगमन के साथ ही पृथ्वी का वातावरण शीतल, निर्मल और जलमय हो जाता है। मानसून के दौरान वायु में नमी बढ़ जाती है, जिससे प्राणवायु (ऑक्सीजन) की सघनता भी अधिक होती है। यह समय शरीर के भीतर के दोषों के शमन का होता है और उपवास जैसे तपस्वी क्रियाएं इस समय शरीर को प्राकृतिक रूप से शुद्ध करती हैं। सोमवार का व्रत विशेषतः पाचन तंत्र को विश्राम देता है और मन को संयमित करता है।

आध्यात्मिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रभाव

भगवान शिव को ‘योगेश्वर’ कहा गया है—अर्थात योग, ध्यान और समाधि के सर्वोच्च प्रतिनिधि। श्रावण सोमवार को शिव की उपासना से व्यक्ति की चित्तवृत्तियाँ शुद्ध होती हैं और मानसिक संतुलन की प्राप्ति होती है। उपवास, जप और शिव अभिषेक जैसे कर्म ध्यान की गुणवत्ता को तीव्र करते हैं, जिससे साधक की आंतरिक यात्रा और तेजस्विता में वृद्धि होती है। यह मास साधकों के लिए एक दिव्य अवसर बन जाता है जहाँ वे अपने भीतर के शिव तत्व से साक्षात्कार कर सकते हैं।

धार्मिक और ग्रंथों में उल्लेख

शिव पुराण, स्कन्द पुराण और पद्म पुराण आदि अनेक ग्रंथों में श्रावण मास के सोमवारों का उल्लेख विशेष तप और वरदायक व्रतों के रूप में किया गया है। कथा मिलती है कि माता पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए श्रावण के सोमवारों में कठोर व्रत किया था, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। यह कथा इस व्रत को स्त्रियों के लिए विशेष फलदायी बनाती है, किंतु पुरुषों के लिए भी यह व्रत इच्छाओं की पूर्ति, रोगों से मुक्ति और मोक्षदायी साधना का माध्यम बनता है।

समर्पण और शिव का सौम्य स्वरूप

श्रावण में शिव को जल, बिल्वपत्र, दूध, धतूरा आदि अर्पित कर उनका अभिषेक करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। भगवान शिव इस मास में विशेष रूप से सौम्य रूप में पूजे जाते हैं—वह त्रिपुरारी होते हुए भी भक्तों के एक-एक भाव को स्वीकार करने वाले भोलेनाथ हैं। यही कारण है कि साधारण से साधारण व्यक्ति भी श्रावण सोमवार को केवल जल चढ़ाकर शिव की कृपा पा सकता है।

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