


आषाढ़ मास की सप्तमी तिथि, जहां वर्षा ऋतु अपनी भीगती फुहारों के साथ चेतना को तरोताजा करती है, वहीं यह तिथि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत विशिष्ट मानी जाती है। इस दिन उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर में सम्पन्न होने वाली भस्म आरती एक अद्भुत, अलौकिक और दुर्लभ दृश्य होती है, जो भक्तों को शिवतत्त्व से साक्षात्कार का अनुभव कराती है। आषाढ़ शुक्ल सप्तमी का यह दिन, जब गुप्त नवरात्रि के तप और साधना की ऊर्जा भी वातावरण में प्रवाहित होती है, तब महाकाल की आराधना और भी फलदायक मानी जाती है।
भस्म आरती: मृत्यु के पार जीवन का बोध
महाकाल की भस्म आरती न केवल एक परंपरा है, बल्कि यह शिव की उस अवधारणा का साक्षात प्रदर्शन है जिसमें मृत्यु भी मोक्ष का माध्यम बनती है। यह आरती हर दिन प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में होती है, लेकिन आषाढ़ सप्तमी की यह आरती विशेष मानी जाती है क्योंकि इस दिन वातावरण में गुप्त नवरात्रि की साधना शक्ति भी सक्रिय होती है। महाकाल को चढ़ाई जाने वाली भस्म (वास्तव में शव की चिता से प्राप्त भस्म) इस बात की याद दिलाती है कि सब कुछ नश्वर है—पर शिव अजर हैं, अमर हैं, चेतन हैं।
गुप्त नवरात्रि और आषाढ़ सप्तमी का संयोग
आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि एक ऐसा कालखंड है जिसमें तांत्रिक एवं आध्यात्मिक साधक अपनी साधनाओं को सिद्धि की ओर ले जाते हैं। सप्तमी तिथि, जो कि देवी कालरात्रि व मां धूमावती जैसी उग्र देवियों की विशेष साधना की तिथि मानी जाती है, उस दिन जब महाकाल की आरती होती है, तो यह शिव-शक्ति के संगम की छवि बन जाती है। इस दिन किये गये जप, ध्यान एवं आराधना को अत्यंत फलदायक और शीघ्र सिद्धि देने वाला माना गया है।
महाकाल: काल के भी काल
महाकाल केवल उज्जैन के राजा नहीं, वे समय से परे एक चेतन सत्ता हैं। सप्तमी तिथि, जिसमें सूर्य का विशेष प्रभाव होता है, शिव की उस रूप में आराधना का दिन है जिसमें वे ऊर्जा (सूर्य) और विनाश (काल) दोनों के समन्वय हैं। यह आरती उस दिव्यता का पर्व है जहां ‘नाश’ भी 'निर्माण' बन जाता है। इस दिन भस्म आरती में भाग लेना मानो अपनी चेतना को मृत्यु के भय से मुक्त कर देना है।
भक्ति, भानु और ब्रह्म—एक त्रिवेणी संगम
आशाढ़ सप्तमी को सूर्य सप्तमी भी कहा जाता है, और जब यह दिन महाकालेश्वर की भस्म आरती से जुड़ता है, तब यह त्रिवेणी संगम बन जाता है—भक्ति (श्रद्धा), भानु (सूर्य/ऊर्जा) और ब्रह्म (चैतन्य/शिव)। यह आरती शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध कर देती है, और साधक के भीतर के तम को नष्ट कर दीप जलाती है।
महाकाल की भस्म आरती स्वयं में एक चेतना जागरण है, लेकिन जब यह आरती आशाढ़ की सप्तमी पर होती है, और वह भी गुप्त नवरात्रि के प्रभाव में, तब यह आरती केवल दर्शन नहीं रह जाती—वह अनुभव बन जाती है। यह अनुभव भक्त को शिवस्वरूप बना देता है। इसलिए यह कहा जाता है:
"भस्मार्चितो महाकालो, सप्तमी स्नानसमयः।
गुप्त नवरात्रि शक्ति सन्मिलनं, पूर्णं तत्त्वबोधकः।"