डॉ. हरीसिंह गौर, जो एक महान शिक्षाविद, विधिवेत्ता और असाधारण दानी थे, उनकी 156वीं जयंती 26 नवंबर को मनाई जा रही है। उन्होंने बुंदेलखंड के बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के सपने को साकार करने के लिए अपनी आजीवन संचित संपत्ति दान कर दी। सागर यूनिवर्सिटी, जिसे आज डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, की स्थापना उनके इसी अतुलनीय त्याग और दूरदृष्टि का परिणाम है। ब्रिटिश सरकार ने भी उनके योगदान से प्रभावित होकर 1925 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया था।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी नाम दर्ज
दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास में भी डॉ. गौर का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। वर्ष 1922 में जब दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, तब वे इसके पहले संस्थापक कुलपति बने और 1926 तक इस पद पर रहे। विश्वविद्यालय प्रशासन, शिक्षा विस्तार और अकादमिक विकास में उनके योगदान से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1925 में ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया। इसके बाद वे नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे और 1928 से 1936 तक इस दायित्व को निभाया।
सागर यूनिवर्सिटी की नींव रखी
गौर ने सागर विश्वविद्यालय के नए परिसर की आधारशिला रखी थी। सागर शहर और बुंदेलखंड से डॉ. गौर का विशेष भावनात्मक जुड़ाव था। वे रोजाना पथरिया पहाड़ी पर सैर करने जाया करते थे और प्रकृति प्रेमी होने के कारण तालाब के किनारे डूबते सूर्य को निहारना उन्हें अत्यंत प्रिय था। इसी प्राकृतिक सौंदर्य से भरे स्थल पर उन्होंने 15 अगस्त 1948 को सागर विश्वविद्यालय के नए परिसर की आधारशिला रखी।