


उज्जैन, 28 जून 2025 — आज आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के पुण्य दिवस पर महाकालेश्वर मंदिर में सम्पन्न हुई प्रातःकालीन भस्म आरती ने पुनः सिद्ध कर दिया कि महाकाल की उपासना केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्मा के जागरण और ब्रह्म की अनुभूति का माध्यम है। यह दिन भले ही अमावस्या न हो, परंतु द्वितीया की दिव्यता में शिव की कृपा का प्रवाह सहज ही महसूस किया गया।
शिवत्व की शुद्ध परंपरा: भस्म आरती
महाकाल की भस्म आरती — शिव की वह आराधना है जो मृत्यु के बाद भी चेतना को मुक्त कर देती है। हर प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में जब भगवान महाकाल को ताजे भस्म से श्रृंगारित किया जाता है, तो यह क्षण भक्तों के लिए परमानंद का अनुभव बन जाता है। आज की आरती में भी वही दिव्यता, वही नाद, वही ऊर्जा प्रकट हुई, जिसने हजारों श्रद्धालुओं को शिवमय कर दिया।
द्वितीया की विशेष आध्यात्मिक महत्ता
भले ही यह दिन अमावस्या जितना तांत्रिक न हो, लेकिन शुक्ल पक्ष की द्वितीया को दृश्य, आरंभ और वृद्धि की तिथि माना गया है। शिव की उपासना के लिए यह दिन विशेष रूप से उपयुक्त होता है, क्योंकि यह प्रकाश और पुनरुत्थान का प्रतीक है। आज महाकाल को अर्पित आरती ने भक्तों को भी नव ऊर्जा और आत्मशक्ति का वरदान दिया।
भक्ति, साधना और संस्कृति का संगम
आरती के समय मंदिर परिसर शिवमय हो उठा। रुद्राष्टाध्यायी, पंचाक्षरी जप और नादयोग का समवेत स्वर वातावरण को रोमांचित करता रहा। हर भक्त, हर साधक — चाहे वे नागा साधु हों या आम श्रद्धालु — महाकाल के सामने लीन अवस्था में दिखे।
28 जून 2025 की द्वितीया तिथि पर सम्पन्न महाकाल की भस्म आरती, केवल उज्जैन की नहीं, बल्कि पूरे भारत की आत्मा को स्पंदित करने वाला एक अनुपम क्षण बन गया। यह दिन यह संदेश देकर गया कि शिव केवल संहार के देव नहीं, वे पुनरुत्थान और आत्मोत्थान के भी प्रतीक हैं