प्रकाश और करुणा का संगम: कार्तिक पूर्णिमा और गुरु नानक जयंती 2025
कार्तिक पूर्णिमा — जब आकाश में पूर्ण चन्द्र अपनी सम्पूर्ण ज्योति बिखेरता है — भारतीय आध्यात्मिक चेतना का एक विलक्षण पर्व है। यह दिन केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकाश, करुणा और आत्मशुद्धि का प्रतीक बनकर हमारे भीतर के अंधकार को मिटाने का संदेश देता है। इस वर्ष 2025 में यह पावन पूर्णिमा अत्यंत विशेष है, क्योंकि इसी तिथि पर सिख धर्म के प्रथम गुरु — गुरु नानक देव जी — का जन्मोत्सव, गुरुपरब, भी मनाया जा रहा है।
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कार्तिक पूर्णिमा — जब आकाश में पूर्ण चन्द्र अपनी सम्पूर्ण ज्योति बिखेरता है — भारतीय आध्यात्मिक चेतना का एक विलक्षण पर्व है। यह दिन केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकाश, करुणा और आत्मशुद्धि का प्रतीक बनकर हमारे भीतर के अंधकार को मिटाने का संदेश देता है। इस वर्ष 2025 में यह पावन पूर्णिमा अत्यंत विशेष है, क्योंकि इसी तिथि पर सिख धर्म के प्रथम गुरु — गुरु नानक देव जी — का जन्मोत्सव, गुरुपरब, भी मनाया जा रहा है। दो महान परंपराओं का यह संगम, हिन्दू और सिख आध्यात्मिकता की गूंज को एक साथ जोड़ता है — जहाँ दीप जलते हैं, वहीं दया और सेवा की मशाल भी प्रज्वलित होती है।

हिन्दू मान्यता के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा का दिन भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर का संहार कर धर्म की विजय का प्रतीक बन गया। इसी कारण इसे देव दीपावली भी कहा जाता है — जब स्वयं देवता पृथ्वी पर अवतरित होकर गंगा तटों पर दीप प्रज्वलित करते हैं। यह दिन चारमास के समापन का भी सूचक है, जब साधक आत्मसंयम, उपवास, तप और ध्यान के माध्यम से अपने भीतर के तमस का अंत करते हैं। इस दिन स्नान, दान और दीपदान का जो महात्म्य कहा गया है, वह बाहरी अनुष्ठानों से कहीं अधिक भीतरी परिवर्तन का प्रतीक है — जब व्यक्ति अपने अहंकार को जलाकर आत्मा में स्थित परमदीप को प्रकट करता है।

उसी ज्योति की दूसरी दिशा में, गुरु नानक जयंती हमें नाम जपना, कीरत करनी और वंड छकना का संदेश देती है — अर्थात् सच्चे कर्म, ईमानदार आजीविका और साझा सेवा। गुरु नानक देव जी ने संसार को बताया कि ईश्वर केवल मंदिर या गुरुद्वारे में नहीं, बल्कि प्रत्येक हृदय में निवास करता है। उनकी वाणी “एक ओंकार सतनाम” यह स्मरण कराती है कि सृष्टि का मूल एक ही चेतना है, और मनुष्य का धर्म है उस चेतना से जुड़ना, विभाजन नहीं करना। जब सम्पूर्ण विश्व भौतिकता की होड़ में दिशाहीन हो रहा है, तब गुरु नानक के उपदेश मानवता को फिर से करुणा और सत्य की ओर लौटने का निमंत्रण देते हैं।

इस वर्ष की कार्तिक पूर्णिमा पर जब गंगा किनारे दीपों की लहरें लहराएंगी, और गुरुद्वारों में अखंड पाठ व लंगर सेवा की ध्वनि गूँजेगी — तब यह दिन केवल पर्व नहीं रहेगा, बल्कि आत्मा और समाज दोनों के लिए ज्योति-संस्कार बन जाएगा। कार्तिक का प्रकाश हमें भीतर झाँकने को कहता है, और नानक की करुणा हमें दूसरों तक पहुँचने की प्रेरणा देती है। दोनों मिलकर यह सिखाते हैं कि सच्चा उत्सव वही है, जो भीतर ज्ञान का दीप जलाए और बाहर प्रेम का दीप फैलाए।

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