कार्तिक मास की शुक्ल नवमी तिथि, जो इस वर्ष 30 अक्टूबर 2025, गुरुवार को पड़ रही है, आंवला अक्षय नवमी के रूप में मनाई जाएगी। यह दिन भारतीय संस्कृति में धर्म, प्रकृति और सनातन चेतना के अद्भुत संगम का प्रतीक है। इस पर्व का मूल भाव यह है कि आस्था केवल मंदिरों में सीमित न रहकर वृक्षों की जड़ों, वायु की पवित्रता और जीवन की शुद्धता में भी प्रवाहित हो। कार्तिक मास के इस शुभ काल में आंवला वृक्ष की पूजा का विशेष विधान है, क्योंकि शास्त्रों में इसे भगवान विष्णु का निवास स्थान माना गया है।
आध्यात्मिक दृष्टि से यह तिथि अत्यंत पवित्र मानी जाती है। ऐसा कहा गया है कि इस दिन जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से आंवला वृक्ष की पूजा करता है, वह विष्णुलोक की प्राप्ति करता है और उसके समस्त पाप क्षीण हो जाते हैं। पद्मपुराण में उल्लेख है — “आमलकीं पूजयित्वा यः स्नातो भक्त्या नरः सदा, स याति परमं स्थानं विष्णुलोके महीयते।” इस दिन आंवला वृक्ष के नीचे दीपक जलाना, तुलसी अर्चन करना और भगवान विष्णु-लक्ष्मी की आराधना करना मोक्षदायक माना गया है। अक्षय शब्द स्वयं इस दिन के सार को दर्शाता है — अर्थात जो कभी नष्ट नहीं होता। इस दिन किया गया दान, तप, जप और पूजन सदा अक्षय रहता है।
प्राकृतिक दृष्टि से देखा जाए तो यह पर्व जीवनदायी हरियाली और पर्यावरणीय संतुलन का उत्सव है। आंवला वृक्ष को भारतीय परंपरा में “दिव्य रसायन” कहा गया है। यह न केवल विटामिन C का उत्कृष्ट स्रोत है बल्कि मानसिक शांति, शारीरिक स्फूर्ति और रोग प्रतिरोधक शक्ति का आधार भी है। आयुर्वेद में इसे “जीवन–रसायन” बताया गया है जो शरीर, मन और आत्मा को पुनर्जीवित करता है। जब कार्तिक का आकाश नीला और स्वच्छ होता है, तब आंवला नवमी का पूजन प्रकृति की गोद में भक्ति का अनुभव कराता है। यह केवल देवता की आराधना नहीं, बल्कि धरती माता की उपासना भी है।
सांस्कृतिक रूप से यह दिन भारतीय समाज की सामूहिकता और पारिवारिक एकता का प्रतीक है। देश के अनेक भागों में महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं और परिवार की दीर्घायु, सुख-समृद्धि तथा संतति की मंगलकामना करती हैं। गाँवों में आंवला वृक्ष के नीचे सामूहिक पूजा, कथा, और भोजन की परंपरा आज भी जीवित है, जिसे “आंवला भोजना” कहा जाता है। इस दिन वृक्ष की परिक्रमा कर स्त्रियाँ सौभाग्य और शांति की प्रार्थना करती हैं। वास्तव में यह पर्व हमारे सामाजिक जीवन की उस जड़ों को पोषित करता है, जहाँ धर्म और पर्यावरण साथ-साथ चलते हैं।
पर्यावरणीय दृष्टि से आंवला अक्षय नवमी का महत्व आधुनिक युग में और भी बढ़ जाता है। आज जब पृथ्वी जलवायु संकट, प्रदूषण और वनों की कटाई से जूझ रही है, तब यह पर्व हमें वृक्षों के प्रति कृतज्ञ होने का संदेश देता है। एक आंवला वृक्ष लगाना या उसका संरक्षण करना इस दिन का सर्वोत्तम “अक्षय दान” माना गया है। यह वृक्ष मिट्टी को उर्वर बनाता है, भूमिगत जलस्तर को बनाए रखता है और असंख्य जीवों के जीवन का आधार बनता है। भारतीय दृष्टिकोण में वृक्ष केवल हरियाली नहीं, बल्कि जीवन का स्वर हैं — इसीलिए कहा गया है, “वृक्ष देवो भव।”
दार्शनिक रूप से देखा जाए तो अक्षय नवमी जीवन के अक्षय तत्वों — सत्कर्म, श्रद्धा और सेवा — की अनुभूति का पर्व है। यह हमें सिखाती है कि सच्चा अक्षय वही है जो धर्म, करुणा और प्रकृति से जुड़ा हो। सांसारिक संपदा नश्वर है, परंतु जो कर्म प्रकृति की रक्षा, सेवा और प्रेम में समर्पित हैं, वे अमर हो जाते हैं। यही कारण है कि इस दिन की पूजा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि एक जीवनदर्शन है — जिसमें भक्ति का अर्थ प्रकृति के प्रति आभार और संरक्षण बन जाता है।
इस प्रकार आंवला अक्षय नवमी केवल एक व्रत नहीं बल्कि धर्म, प्रकृति और संस्कृति के त्रिवेणी संगम का उत्सव है। यह हमें सिखाती है कि भक्ति केवल आराधना नहीं, बल्कि पर्यावरण की सेवा भी है; दान केवल धन से नहीं, बल्कि वृक्षारोपण और सहयोग से भी होता है; और सच्चा अक्षय वही है जो दूसरों के जीवन में हरियाली, शांति और प्रकाश भर दे।