


भारतीय संस्कृति में विवाह केवल दो व्यक्तियों का ही नहीं, दो परिवारों का भी पवित्र बंधन माना जाता रहा है। यह सामाजिक, धार्मिक और नैतिक मूल्यों की नींव पर आधारित एक संस्था है। किंतु हाल के वर्षों में देखा जा रहा है कि भारत में अनेक युवा विवाह के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं। वे या तो विवाह में देरी कर रहे हैं, विवाह से पूरी तरह दूर रह रहे हैं, या विवाह को एक ऐच्छिक संस्था मान रहे हैं। यह बदलाव न केवल परिवार के लिए, बल्कि समूचे समाज के लिए एक गहरी और गंभीर चुनौती बन रहा है।
युवाओं के विवाह से मोहभंग के प्रमुख कारण
1. आर्थिक अनिश्चितता और करियर प्राथमिकता
आज के युवा करियर को प्राथमिकता देते हैं। वे आर्थिक स्थायित्व की तलाश में विवाह को टालते हैं। उच्च शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षाएं, विदेश जाने की योजनाएं – ये सब उन्हें विवाह से दूर रखती हैं।
2. स्वतंत्र जीवनशैली की चाह
आधुनिक युवा आत्मनिर्भर, स्वतंत्र और निजी स्पेस को प्राथमिकता देते हैं। उन्हें लगता है कि विवाह से उनकी स्वतंत्रता सीमित हो जाएगी, और वे जिम्मेदारियों के बंधन में बंध जाएंगे।
3. विवाह को लेकर बढ़ता अविश्वास
तलाक की बढ़ती घटनाएं, वैवाहिक हिंसा, और असफल रिश्तों की कहानियाँ विवाह संस्था पर भरोसे को कमजोर कर रही हैं। सोशल मीडिया और फिल्मों में दिखाए गए "परफेक्ट रिलेशनशिप्स" की तुलना में वास्तविक विवाह कठिन लगने लगता है।
4. वैकल्पिक संबंधों की बढ़ती स्वीकार्यता
Live-in relationships, single parenting और child-free marriage जैसे विकल्पों को अब समाज में धीरे-धीरे स्वीकृति मिलने लगी है। इससे युवाओं के लिए विवाह अब अपरिहार्य नहीं रहा।
परिवार और समाज पर प्रभाव
परिवार पर
पीढ़ियों के बीच दूरी बढ़ रही है। माता-पिता को अपने बच्चों के निर्णय समझना कठिन लग रहा है।
वृद्धावस्था में अकेलापन बढ़ रहा है। विवाह न करने वाले युवा अक्सर अकेले रहते हैं और उनका परिवार वृद्ध माता-पिता की देखभाल को लेकर चिंतित रहता है।
संयुक्त परिवार की अवधारणा कमजोर हो रही है, और पारिवारिक मूल्यों का क्षरण देखने को मिल रहा है।
समाज पर
जनसंख्या असंतुलन की संभावना: जैसे-जैसे विवाह और मातृत्व/पितृत्व में देरी हो रही है, जनसंख्या वृद्धि दर कम हो सकती है।
मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं: अकेलापन, डिप्रेशन, और चिंता विकारों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
सामाजिक ढांचे में परिवर्तन: विवाह और परिवार जैसे पारंपरिक स्तंभों के कमजोर होने से सामाजिक संरचना भी असंतुलित हो सकती है।
क्या यह पूरी तरह नकारात्मक है?
इस प्रवृत्ति के कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं
युवा अब विवाह को सोच-समझकर और स्वेच्छा से चुनते हैं, न कि सामाजिक दबाव में आकर।
जबरन विवाह, दहेज प्रथा, बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं से मुक्ति मिली है।
महिलाएं अधिक आत्मनिर्भर हो रही हैं और विवाह को अपनी पसंद के अनुसार अपनाने लगी हैं।
समाधान और आगे की राह
1. विवाह को सह-भागिता और साझेदारी के रूप में प्रस्तुत करना, जहाँ दोनों साथी समान अधिकार और सम्मान रखते हों।
2. माता-पिता को युवा पीढ़ी की सोच को समझने का प्रयास करना चाहिए, और विवाह को दबाव नहीं, संवाद का विषय बनाना चाहिए।
3. शिक्षा प्रणाली में पारिवारिक मूल्यों और रिश्तों की संवेदनशीलता को स्थान देना ज़रूरी है।
4. समाज को विवाह संस्था में सुधार की ओर देखना होगा — जहाँ स्वतंत्रता और ज़िम्मेदारी का संतुलन बना रहे।
भारतीय समाज में युवाओं का विवाह से मोहभंग एक सामाजिक परिवर्तन का संकेत है, जिसे केवल नकारात्मक दृष्टि से देखना उचित नहीं होगा। यह बदलाव युवाओं की सोच, उनके आत्मनिर्भरता की भावना और स्वतंत्र निर्णय क्षमता का प्रतीक है। परंतु यदि यह प्रवृत्ति बिना संतुलन के आगे बढ़ी, तो परिवार और समाज के मूलभूत ढांचे पर असर डाल सकती है। ऐसे में आवश्यक है कि समाज संवाद, समझदारी और सह-अस्तित्व की भावना के साथ इस परिवर्तन को स्वीकार करे और उसे सकारात्मक दिशा दे।