


वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोविंद सिंह जी ने पंजाब के आनंदपुर साहिब में सिखों को इकट्ठा होने के लिए कहा. सबके पहुंचने के बाद गुरु ने ऐसे स्वयं सेवकों को आगे आने के लिए कहा, जो अपना सर्वोच्च बलिदान देने के लिए तैयार थे. पांच लोग आगे आए जो सिर कटाने के लिए तैयार थे. गुरु ने इन्हें पंज प्यारे कहा और खालसा पंथ की स्थापना की.
औरंगजेब का अत्याचार बढ़ता जा रहा था
ये मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन काल की बात है. उसका अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था. देश भर के हिन्दू आतंकित थे. बनारस, उदयपुर और मथुरा से लेकर हिन्दुओं की आस्था के कई क्षेत्रों में औरंगजेब की सेना मंदिरों को ध्वस्त कर रही थी. साल 1669 में शाही आदेश जारी कर दिया कि नदी किनारे हिन्दू मृतकों का अंतिम-संस्कार नहीं होगा. वहीं, शेर अफगान नाम के एक आक्रमणकारी औरंगजेब की शह पर जम्मू-कश्मीर के कश्मीरी पंडितों का नाम-ओ-निशा मिटाने पर तुला था. इस पर कश्मीरी पंडित सिखों के नौवें गुरु गुरु तेगबहादुर जी के पास फरियाद लेकर पहुंचे. उनकी दास्तान सुनकर गुरु काफी दुखी हुए और औरंगजेब से मिलने चल दिए.
गुरु तेग बहादुर जी शहीद हो गए
औरंगजेब से मिलने के लिए गुरु तेग बहादुर जी एक प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली पहुंचे. बताया जाता है किऔरंगजेब को उन्होंने चुनौती दी कि अगर वह गुरु तेग बहादुर जी का धर्म बदलवा कर इस्लाम धर्म धारण करा सकता है, तो सभी कश्मीरी पंडित अपना धर्म बदल लेंगे. इस पर औरंगजेब ने अपने लोगों को आदेश दिया कि किसी भी कीमत पर गुरु तेग बहादुर का धर्म बदलावाया जाए. इसके लिए उनको हर तरह की यातना दी गई पर गुरु टस से मस न हुए. अंत में गुरु तेग बहादुर जी शहीद हो गए.
इसलिए हुई खालसा की स्थापना
गुरु तेग बहादुर जी के शहीद होने पर उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह जी 10वें गुरु बने तो धर्म की रक्षा के लिए खालसा का गठन करने का फैसला किया. खालसा का अर्थ होता है शुद्ध या पवित्र. उन्होंने देश भर से अपने मानने वालों को 30 मार्च 1699 को आनंदपुर साहिब बुलाया. बैसाखी के मौके पर गुरु ने कृपाण लहराकर कहा कि धर्म और मानवता को बचाने के लिए पांच शीश चाहिए. कौन-कौन मुझे शीश देगा. सबसे पहले भाई दयाराम उठे और बोले कि अपना शीश दान के लिए तैयार हूं. इसके बाद एक-एक कर चार सिख और उठे. वे थे भाई धर्म सिंह, भाई मोहकम सिंह, भाई हिम्मत सिंह और भाई साहब सिंह.
अमृत पान करा कर खालसा पंथ की स्थापना की
गुरु गोविंद सिंह जी इन पांचों को अपने तंबू में ले गए और सबको केसरिया लिबास में बाहर लाए. सिर पर भी केसरी पगड़ी थी. गुरु गोविंद सिंह जी ने भी खुद भी वैसी ही वेशभूषा धारण की थी. फिर गुरु गोविंद सिंह जी ने होले की कटोरी में भरे पानी में बताशे मिलाया और तलवार से हिला कर इन पांचों को अमृत पान कराया और खालसा पंथ में शामिल किया. इसके साथ ही खालसा पंथ का सृजन हुआ. खालसा पंथ के ये पांचों वीर अलग-अलग जाति के थे. गुरु ने इनको सिंह की उपाधि दी और धर्म की रक्षा के लिए इनको पंज प्यारे कहा.
गुरुओं की शिक्षा पर आधारित खालसा पंथ
खालसा पंथ का सृजन 10 गुरुओं के प्रशिक्षण और शिक्षा पर आधारित है. गुरु गोविंद सिंह जी महाराज चाहते थे कि हर सिख हर रूप में भक्ति और शक्ति से परिपूर्ण हो. उनके मुख्य सिद्धांतों में दान और तेग (तलवार) शामिल हैं. उन्होंने सिखों में त्याग, ईमानदारी, स्वच्छता, दान और साहस जैसे गुण उत्पन्न किए. उनके बनाए नियम के तहत तलवार का इस्तेमाल खालसा सिर्फ आपात स्थिति में ही करेगा. सभी शांतिपूर्ण प्रयास विफल होने के बाद ही तलवार खींची जा सकती है. इसका इस्तेमाल आत्मरक्षा और पीड़ितों की रक्षा करने के लिए ही किया जा सकता है.