


खुशी एक ऐसा तत्व है जो अंतर्मन को जाग्रत करने से मिलती है। यह नि:शुल्क है लेकिन फिर भी प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए ही दुनिया में लोग लाखों-करोड़ों खर्च करते हैं। उसके बाद भी प्रसन्नता की कोई गारंटी नहीं होती। लोगों का मानना है कि खुशी धन, यश से आती है। धन और यश क्षणिक वस्तुएं हैं। इनसे पूरे जीवन की खुशी प्राप्त करना असंभव है। हमारा मस्तिष्क एक इच्छा पूर्ण होने के बाद ही दूसरी इच्छाओं की पूर्ति में लग जाता है। इस तरह पहली वस्तु प्राप्ति की इच्छा और खुशी समाप्त हो जाती है। जो वस्तु अप्राप्य है उसकी कामना में हृदय मचलने लगता है। यही दुख का कारण बनता है।
इसके अलावा भी दुखी होने के अनेक कारण होते हैं। जब हम काम करते हैं या फिर सामाजिक परिवेश के दौरान कई बार ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं जब हम पर शब्दों की मार पड़ती है। शब्दों की तुलना घातक और विषैले बाण से की जाती है। ये शब्द अंतर्मन को आहत कर देते हैं। बौद्ध मत कहता है कि नकारात्मक वाक्यों को तुरंत भुला देना चाहिए। इसके लिए बस यह मंत्र अपनाना चाहिए कि, ‘कोई ध्यान न दें।’ जब शब्दों पर ध्यान दिया जाता है तभी वह शिला की भांति हृदय में गड़ते प्रतीत होते हैं। उस ओर से ध्यान हटा कर अच्छी बातों को सोचने से तनाव और पीड़ा छूमंतर हो जाती है।
बौद्ध विवेक यही है कि स्वयं की वस्तुओं के मोह से दूर होना सीखें। शब्दों के घेरे में भी न घूमें। खुश रहना हमारे शरीर के रसायनों पर निर्भर करता है। शरीर में डेल्टा, थीटा, अल्फा, बीटा और गामा मस्तिष्क तरंगें होती हैं। इनमें से गामा मस्तिष्क तरंगों की आवृत्ति सभी तरंगों से अधिक होती है। गामा तरंगें उच्च स्तर के विचार और ध्यान से जुड़ी होती हैं। शोध बताते हैं कि यदि मस्तिष्क गामा तरंगों के उच्च स्तर उत्पन्न करता है, तो व्यक्ति अधिक खुश और ग्रहणशील होता है। गामा तरंगों का उच्च स्तर व्यक्ति को एकाग्र, प्रसन्न और कार्यशील स्मृति को अच्छा बनाता है।
कभी न उदास होने वाले व्यक्ति हैं—मैथ्यू रिचर्ड। वे दुनिया के सबसे खुश इंसान हैं। उनका जन्म फ्रांस में हुआ था। खुशी की तलाश में उन्होंने फ्रांस को छोड़ दिया। वे तिब्बत पहुंच गए। यहां आकर वे दलाई लामा के फ्रेंच दुभाषिए का कार्य करने लगे। इस दौरान उन्हें बौद्ध धर्म से जुड़ी नई-नई बातें जानने को मिलीं। उन्होंने इस बात को महसूस किया कि किसी भी नकारात्मक बात पर ध्यान न देना बौद्ध विवेक है। अंग्रेजी में एक कहावत भी है कि, ‘आउट आफ साइट, आउट आफ माइंड’। इसका अभिप्राय यह है कि आंखों और मन से ओझल बातों, वस्तुओं और व्यक्तियों को प्रायः भुला दिया जाता है। यदि इसे सकारात्मक तरीके से प्रयोग किया जाए तो यह बौद्ध विवेक व्यक्तियों की खुशी को जाग्रत करने का सबसे प्रमुख कारण बन सकता है।
मैथ्यू ने ध्यान द्वारा अपने मस्तिष्क की गामा तरंगों को अधिक विकसित किया, फलस्वरूप उन्होंने खुश रहने में सफलता प्राप्त की। उनका मानना है कि, ‘अब कोई भी बदलाव उन्हे उदास नहीं करता।’ विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मैथ्यू के सिर पर 256 सेंसर लगाए ताकि उनके अंदर की हलचल को जाना जा सके। ये रिसर्च 12 सालों तक चली। उन्होंने जाना कि जब भी मैथ्यू ध्यान करते थे तो उनका मस्तिष्क गामा तरंगें पैदा करता था। ये तरंगें ध्यान और स्मृति को बढ़ाने में मदद करती हैं। रिसर्च से यह बात साबित हो गई कि मैथ्यू के अंदर इतनी अधिक खुशी है कि वहां पर नकारात्मकता के लिए कोई जगह नहीं है।
गामा तरंगें दुनिया के बहुत कम लोगों में पाई जाती हैं। यह किसी भी परिस्थिति में खुशी का स्तर बढ़ाने का काम करती हैं। गामा तरंग के बारे में मैथ्यू का कहना है कि, ‘उन्होंने इस तरंग को खुद विकसित किया है।’ इंसान के दिमाग में खुशी को लेकर एक विशेष सिस्टम होता है। यह हमारे मस्तिष्क में माथे के आगे के हिस्से और कान के ठीक ऊपर दाहिनी और मौजूद होता है। इसका काम खुशी की तरंगों को उत्पन्न करना है। मैथ्यू कहते हैं कि अब खुशी उनकी जिंदगी का केवल एक हिस्सा भर नहीं, बल्कि आदत बन चुकी है। उनका मानना है कि कुछ कार्यों को करके प्रत्येक व्यक्ति अपनी गामा तरंगों को विकसित कर सकता है और खुश रह सकता है।