


जब अंधकार से उजाला जीतता है, तब दीपों की रोशनी केवल घरों को नहीं, आत्माओं को भी प्रकाशित करती है। नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दीपावली कहा जाता है, केवल दीपदान का पर्व नहीं, बल्कि मृत्यु और जीवन के बीच आत्मा की शांति का संदेश है। इस दिन यमराज की आराधना से मनुष्य अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होता है।
यमाष्टक स्तोत्र – मृत्यु के भय पर विजय का मन्त्र
यमाष्टक स्तोत्र में धर्मराज के आठ पवित्र नामों का वर्णन है। जो व्यक्ति श्रद्धा से इसका पाठ करता है, उसके जीवन से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है। देवी सावित्री ने भी इसी स्तोत्र के प्रभाव से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। श्रीमद्देवीभागवत के नवम स्कंध में इसका उल्लेख मिलता है — “तपसा धर्ममाराध्य पुष्करे भास्करः पुरा। धर्मं सूर्यः सुतं प्राप धर्मराजं नमाम्यहम॥”
सुबह का अभ्यंग स्नान और यम दीपक का महत्व
19 अक्तूबर 2025 की सुबह अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व रहेगा। तेल और अपामार्ग के पत्तों से स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर में गंगाजल का छिड़काव कर वातावरण को पवित्र बनाएं। सूर्यास्त के बाद दक्षिण दिशा में चार मुख वाला दीपक जलाएं। इसे यम दीपक कहा जाता है। माना जाता है कि यह दीपक यमराज को समर्पित होता है और परिवार को अकाल मृत्यु के भय से बचाता है।