आत्मसाक्षात्कार : अध्यात्म की सर्वोच्च उपलब्धि
आत्मसाक्षात्कार का मार्ग ही साधना का मार्ग और अध्यात्म का मार्ग कहा जाता है। ये आत्मसाक्षात्कार क्या है? शास्त्र कहते हैं कि प्रत्येक जीव में जो चेतना है वह उसका आत्म तत्व ही है। ऋषि वशिष्ठ ने जीवों की चेतना को ही आत्मा कहकर व्याख्यायित किया है। ये आत्मा ही है जो सदा सर्वदा से शास्त्रों में वर्णित होती आई है। इस आत्म तत्व के इर्द-गिर्द ही सभी धर्मों के शास्त्र रहते आए हैं।
Img Banner
profile
Sanjay Purohit
Created AT: 10 hours ago
69
0
...

आत्मसाक्षात्कार का मार्ग ही साधना का मार्ग और अध्यात्म का मार्ग कहा जाता है। ये आत्मसाक्षात्कार क्या है? शास्त्र कहते हैं कि प्रत्येक जीव में जो चेतना है वह उसका आत्म तत्व ही है। ऋषि वशिष्ठ ने जीवों की चेतना को ही आत्मा कहकर व्याख्यायित किया है। ये आत्मा ही है जो सदा सर्वदा से शास्त्रों में वर्णित होती आई है। इस आत्म तत्व के इर्द-गिर्द ही सभी धर्मों के शास्त्र रहते आए हैं। सनातन परम्परा में भी आत्मशुद्धि के उपायों का वर्णन मिलता है। ऋषि, महर्षि, साधु-संत और परमहंस सब इस आत्म तत्व के इर्द-गिर्द ही खड़े दिखाई देते हैं। आत्म प्रकाश की भी बात उठती है।

आत्म प्रकाश के विषय में भ्रम की स्थिति रहती है। आत्मा को व्यक्ति साधना से प्रकाशित करता है या आत्मा सदा सवर्दा से स्वयं ही प्रकाशित होती है? ये प्रश्न भटकाता है। आत्मा हर व्यक्ति में निवास करती है, हर जीव में निवास करती है। आत्मा प्रत्येक की अलग-अलग होती है। तो क्या प्रत्येक की आत्मा प्रकाशित नहीं होती? क्या प्रत्येक आत्मा का कोई अलग-अलग स्वरूप होता है? ये सब प्रश्न विचलन पैदा करने वाले हैं।

एक और शब्द खूब सुनाई देता है जिसे आत्मसाक्षात्कार कहते हैं? ये भी बड़ा भ्रम है। जब आत्मा हर जीव में है और साक्षात है तो फिर अपनी ही आत्मा के साक्षात्कार का विषय कैसा? ये सब आध्यात्म के उलझे सवाल लग सकते हैं। किंतु ये एक विज्ञान है जिस पर प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों ने चिंतन किया है, मनन किया है, व्याख्याएं प्रस्तुत की हैं। आज भी इन विषयों पर चिंतन मनन और साधनाएं निरंतर हो रही हैं।

आत्मा शाश्वत है किंतु अमूर्त है। इसकी क्रियाविधि की स्पष्टता सबको सहज नहीं होती। हम जो सोचते हैं जो फैसले लेते हैं वो तो हमारे मन और बुद्धि का कार्य है। आत्मा इन निर्णयों में शामिल होती भी है या नहीं ये भी चिंतन का विषय है। शास्त्र कहते हैं कि आत्मा पर हमारे जीवन में हो रही घटना का कोई खास असर नहीं होता। क्योंकि जीवन की घटनाएं तो कर्म और काल के आधीन है। जबकि आत्मा कालजयी है।

शास्त्र जिसे अहम‍् ब्रह्मास्मि कहते हैं, वो भला सुख-दु:ख से कैसे प्रभावित हो सकती है। और सुख दुख भी क्या है? एक अनुभूति जैसा ही तो है। ये जो ऊपरी अनुभूति है क्या ये आत्मा की अनुभूति है? हमारे शरीर पर गर्म और ठंडा लगता है। हमारी जीभ को नमक और मीठा महसूस होता है। हमारी आंख को प्रकाश और अंधकार दिखता है। हमारे मन को अच्छा और बुरा लगता है। हमारे हित का हो तो हमें अच्छा लगता है हमारे अहित का हो तो हमें बुरा लगने लगता है। ये जो हित और अहित है क्या ये स्थाई है।

आत्मा की अपनी एक यात्रा है। शरीर की अपनी यात्रा है। मन की अपनी यात्रा है और बुद्धि की भी अपनी यात्रा है। दर्शन से दृष्टि बदल जाती है। दृष्टि के बदलते ही व्यक्ति, और व्यक्ति अपने लिए एक नई सृष्टि रचने में सक्षम है। व्यक्ति अपनी भौतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्म करता है। इस कर्म की शुद्धि का भान बिरलो को ही होता है।

शास्त्र कहते हैं ‘शरीर खलु धर्म साधनम‍्’ अर्थात‍् शरीर ही धर्म का साधन है। ये धर्म क्या है? जिसका साधन शरीर है। ये धर्म ही है जो असल आध्यात्म की तरफ ले जाता है। जैसे अग्नि का धर्म है जलाना। जब अग्नि के संसर्ग में कुछ भी आता है तो वो अपना धर्म करती है। बिना किसी भेद भाव के। वो कठोर हो तरल हो। वस्तु हो अथवा व्यक्ति हो सबको जला देती है। अग्नि का धर्म है जलाना। इसी तरह हर मनुष्य का हर व्यक्ति का भी कुछ तो मूल धर्म होता होगा। आत्मा का भी अपना धर्म जरूर होगा जिसे वो बिना किसी विवेक के करती होगी। इसी धर्म का ज्ञान करना जीवन का प्रथम लक्ष्य है।

हमें लगता है कि पूजा की पद्धतियों से व्यक्ति का धर्म तय हो जाता है। जबकि ये सत्य नहीं है। असल धर्म तो वही है जो हमारी आत्मा का धर्म है। जो हमारी आत्मा बिना किसी विवेक के फेर में पड़े निर्वाह करती है।

ये आत्मा अजर अमर हैं— श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का श्लोक 20 है, जिसमें भगवान कृष्ण कहते हैं—आत्मा न कभी जन्मती है, न मरती है, और न ही यह उत्पन्न होकर फिर होने वाली है; यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, और शरीर के नष्ट होने पर भी यह नष्ट नहीं होती।

यदि हम इस कथन को सत्य मानते हैं तो फिर हमारी यात्रा कोई इस जन्म की तो नहीं है? फिर हम इतने नये तो नहीं हैं जितना की ये शरीर है। हम तो पुरातन हैं, और जो पुरातन है क्या हम अभी तक उससे मिले ही नहीं है? अर्थात आत्म के साक्षात्कार का प्रश्न क्या है?

आत्म का साक्षात्कार उन घटनाओं के जानने से हैं, उस अनुभूति तक पहुंचने से है, जो हमारी आत्मा की आज तक की यात्रा रही है। यदि आत्मा से परिचय या साक्षात्कार का कोई लक्ष्य है तो वह अपनी आत्मा की पूर्व की यात्रा का वृत्तांत जानना ही है। जैसे वो साक्षात्कार पूरा होता था वो ऋषि वृंद त्रिकाल दर्शी हो जाते थे। आत्मा की यात्रा सतत है। अत: इसकी यात्रा का एक वृत्त होता है और यात्रा निरंतर है तो कई पड़ाव ऐसे होंगे, जो पुन:-पुन: आते होंगे। इसीलिए आत्मतत्व से भेंट होते ही पूरा मार्ग सहज हो जाता है। इसीलिए आत्मा को ब्रह्मस्वरूप कहा गया होगा- अहम‍् ब्रह्मास्मि।

ये भी पढ़ें
सीएम की घोषणा,कटंगी और पौड़ी बनेगी तहसील,लाड़ली बहना योजना सम्मेलन में शामिल हुए सीएम
...

IND Editorial

See all →
Sanjay Purohit
आत्मसाक्षात्कार : अध्यात्म की सर्वोच्च उपलब्धि
आत्मसाक्षात्कार का मार्ग ही साधना का मार्ग और अध्यात्म का मार्ग कहा जाता है। ये आत्मसाक्षात्कार क्या है? शास्त्र कहते हैं कि प्रत्येक जीव में जो चेतना है वह उसका आत्म तत्व ही है। ऋषि वशिष्ठ ने जीवों की चेतना को ही आत्मा कहकर व्याख्यायित किया है। ये आत्मा ही है जो सदा सर्वदा से शास्त्रों में वर्णित होती आई है। इस आत्म तत्व के इर्द-गिर्द ही सभी धर्मों के शास्त्र रहते आए हैं।
69 views • 10 hours ago
Sanjay Purohit
हिमालय की गोद में जागी विदेशी योगिनियों की दिव्य चेतना
मनुष्य के सुख का चरम तब मोहभंग करता है जब वो दर्द देने लगता है। भोग-विलास की संस्कृति एक सीमा तक तो सुख देती है लेकिन कालांतर जीवन की विसंगतियां व्यक्ति में शून्य भरने लगती हैं। यही वजह है कि धनी व विकसित देशों की सैकड़ों योग साधिकाएं योग व आध्यात्मिक साधना से सुकून की तलाश में भारत चली आती हैं।
52 views • 2025-12-07
Sanjay Purohit
बगराम एयरबेस: शक्ति-संतुलन की धुरी और भारत की रणनीतिक सजगता
अफगानिस्तान की पर्वत-शृंखलाओं के बीच बसा बगराम एयरबेस आज केवल एक सैन्य ठिकाना नहीं, बल्कि बदलती वैश्विक राजनीति का प्रतीक बन चुका है। कभी अमेरिकी फाइटर जेट्स की गर्जना से गूंजने वाला यह अड्डा अब शक्ति-संतुलन, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव के अदृश्य खेल का केंद्र है।
274 views • 2025-10-30
Sanjay Purohit
बाहर-भीतर उजाले के साथ फैलाए सर्वत्र खुशहाली
अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, दुष्चरित्रता पर सच्चरित्रता की और निराशा पर आशा की जीत का पर्व दीपावली भारतीय संस्कृति व सामाजिक दर्शन का मूल भाव दर्शाता है। पारंपरिक रूप से इस मौके पर लक्ष्मी पूजन के साथ खुशहाली की कामना समाज के हर वर्ग के लिए है जिसे बढ़ावा देने की जरूरत है। दूसरे पर्वों की तरह यह पर्व भी प्रकृति व सामाजिक परिवेश के प्रति दायित्व निभाने का संदेश लिये है। मसलन हम पारंपरिक उद्यमों से निर्मित सामान खरीदकर उन्हें संबल दें।
118 views • 2025-10-19
Sanjay Purohit
फिल्मी दिवाली में प्रतीकों के जरिये बहुत कुछ कहने की परंपरा
फिल्मों में हर त्योहार का अपना अलग प्रसंग और संदर्भ है। होली जहां मस्ती के मूड, विलेन की साजिश के असफल होने और नायक-नायिका के मिलन का प्रतीक बनता है। जबकि, दिवाली का फ़िल्मी कथानकों में अलग ही महत्व देखा गया। जब फ़िल्में रंगीन नहीं थी, तब भी दिवाली के दृश्य फिल्माए गये। पर, वास्तव में दिवाली को प्रतीकात्मक रूप ज्यादा दिया गया। अधिकांश पारिवारिक फिल्मों में दिवाली मनाई गई, पर सिर्फ लक्ष्मी पूजन, रोशनी और पटाखों तक सीमित नहीं रही। दिवाली की रात फिल्मों के कथानक में कई ऐसे मोड़ आए जिनका अपना अलग भावनात्मक महत्व रहा है।
298 views • 2025-10-18
Sanjay Purohit
धनतेरस: दीपावली के प्रकाश पर्व की आध्यात्मिक शुरुआत
दीपावली, जिसे अंधकार पर प्रकाश की विजय का उत्सव कहा गया है, उसकी वास्तविक शुरुआत धनतेरस से होती है। यह केवल उत्सव का पहला दिन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक आलोक का उद्घाटन भी है। धनतेरस, या धनत्रयोदशी, कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है — वह क्षण जब जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक संतुलन का प्रथम दीप प्रज्वलित होता है।
241 views • 2025-10-17
Sanjay Purohit
गांधी जयंती विशेष: आज की दुनिया में गांधीवादी मूल्यों की प्रासंगिकता
आज जब पूरी दुनिया हिंसा, युद्ध, जलवायु संकट, आर्थिक असमानता और मानवीय संवेदनाओं के क्षरण से जूझ रही है, ऐसे समय में महात्मा गांधी के सिद्धांत पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक दिखाई देते हैं। गांधीजी का जीवन कोई बीता हुआ अध्याय नहीं, बल्कि एक ऐसा प्रकाशस्तंभ है, जो आज के अंधकारमय परिदृश्य में मार्गदर्शन करता है।
255 views • 2025-10-02
Sanjay Purohit
दुर्गा तत्व—भारतीय दर्शन और अध्यात्म का सार
भारतीय दर्शन का मूल भाव केवल बाहरी पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा के मिलन की यात्रा है। इसी यात्रा में दुर्गा तत्व एक केंद्रीय स्थान रखता है। दुर्गा केवल देवी का नाम नहीं, बल्कि शक्ति, साहस और आत्मविश्वास की वह ऊर्जा है जो प्रत्येक जीव में अंतर्निहित है।
418 views • 2025-09-24
Sanjay Purohit
शक्ति का दर्शन : सनातन परंपरा में शाक्त मार्ग और नवरात्रि का आध्यात्मिक संदेश
सनातन परंपरा के विशाल आध्यात्मिक आकाश में शक्ति की साधना एक अद्वितीय और प्राचीन प्रवाह है। शाक्त दर्शन केवल किसी देवी की पूजा का भाव नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त ऊर्जा, चेतना और जीवन के रहस्यों को समझने का मार्ग है।
238 views • 2025-09-21
Sanjay Purohit
हिन्दी : शिवस्वरूपा और महाकाल
हिन्दी दिवस के एक दिन पूर्व यह लेख लिखते हुए मन में अपार गर्व और आत्मगौरव का अनुभव हो रहा है। निसंदेह हिन्दी दुनिया की श्रेष्ठतम भाषाओं में एक है। हर भाषा का अपना आकर्षण है, लेकिन हिन्दी अनेक मायनों में अद्वितीय और अनुपम है। इसमें सागर जैसी गहराई है, अंबर जैसा विस्तार है और ज्योत्स्ना जैसी शीतलता है।
340 views • 2025-09-13
...