


दक्षिण-पूर्व एशिया में भू-राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं। विशेष रूप से थाईलैंड और कंबोडिया के बीच संबंधों को लेकर समय-समय पर तनाव की खबरें सामने आती रही हैं। हाल ही में इस क्षेत्र में बढ़ती सैन्य गतिविधियों और रणनीतिक साझेदारियों के बीच एक सवाल बार-बार उठता है—क्या चीन इन दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ावा दे रहा है या फिर वह खुद इस तनाव का अप्रत्यक्ष लाभार्थी है?
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संबंध
थाईलैंड और कंबोडिया का रिश्ता ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्तर पर घनिष्ठ रहा है, लेकिन सीमा विवादों, राजनीतिक हस्तक्षेप और शरणार्थी संकटों ने इस रिश्ते को बार-बार प्रभावित किया है। खासकर प्रेह विहेयर मंदिर विवाद ने 2008–2011 के दौरान सीमाई तनाव को गंभीर बना दिया था।
चीन की भूमिका: समर्थन या रणनीतिक नियंत्रण?
चीन ने बीते दशक में कंबोडिया में भारी निवेश किया है—सड़कें, बंदरगाह, सैन्य आधारभूत ढांचा और हथियार। सिहानोकविल जैसे क्षेत्रों में चीनी उपस्थिति अब केवल व्यापार तक सीमित नहीं रही, बल्कि सुरक्षा और रणनीतिक लिहाज़ से भी अहम हो गई है।
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन की सरकार को चीन का राजनीतिक संरक्षण और आर्थिक सहायता लगातार मिलती रही है। वहीं थाईलैंड भी चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का भागीदार है, लेकिन उसकी रणनीति अमेरिका के साथ संतुलन बनाए रखने की रही है।
क्या चीन को लाभ है तनाव से?
कूटनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चीन की “विभाजित करो और लाभ उठाओ” नीति दक्षिण-पूर्व एशिया में भी लागू होती दिख रही है। यदि थाईलैंड और कंबोडिया के बीच आपसी विश्वास कमज़ोर होता है, तो इससे ASEAN की एकता पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिससे चीन को दक्षिण चीन सागर में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिल सकती है।
कंबोडिया का सैन्य झुकाव
2023 में अमेरिकी रिपोर्ट्स ने यह दावा किया था कि रीम नेवल बेस पर चीन की गुप्त सैन्य मौजूदगी है। यद्यपि कंबोडिया ने इसका खंडन किया, लेकिन इस खबर ने यह स्पष्ट किया कि कंबोडिया धीरे-धीरे चीनी सैन्य नीति का भाग बनता जा रहा है।
अगर कभी थाईलैंड और कंबोडिया के बीच वास्तविक संघर्ष होता है, तो कंबोडिया की सैन्य क्षमता चीन द्वारा समर्थित हो सकती है—यह चिंता का विषय है।
थाईलैंड की रणनीति और वैश्विक सहयोग
थाईलैंड ने हमेशा से बहुपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता दी है। उसका झुकाव अमेरिका, जापान और भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों की ओर भी रहा है। चीन से आर्थिक संबंधों के बावजूद, थाईलैंड अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को बचाए रखना चाहता है।